कलम ये हुस्न गजल में उतार देता है।
कलम ये हुस्न गजल में उतार देता है।
शऊर ओ फिक्र को मेरे संवार देता है।
यह उसका कर्ज है हमसे अदा नहीं होगा।
वह जब भी मिलता है कुछ गम उधार देता है।
गली में आकर बुला लेते हैं तुझे छत पर।
यह मेरा इश्क मुझे अख्तियार देता है।
ये मेरा इश्क गम ए इश्क हो नहीं सकता।
मेरा सुकून कहां इंतिशार देता है।
मैं मुंतजिर हूं मुहब्बत के वास्ते जिसकी।
वो प्यार देता है तो बे शुमार देता है।