बाख़ूबी खुद को समझाना आता है……………..
बाख़ूबी खुद को समझाना आता है
दर्दों से भी दिल बहलाना आता है
ख्वाबों की तितली दौड़ाना आता है
बच्चों को बातें मनवाना आता है
फूलों को आँगन महकाना आता है
तूफ़ानों में मुस्कुराना आता है
तेज़ हवाएँ क्या कर लेंगी आज हमें
उलझी ज़ुल्फ़ो को सुलझाना आता है
आँधी रस्ता माँगे इनसे रुक रुक कर
पेड़ों को शाखें लचकाना आता है
जान हथेली रख कर आना बनता है
शम्मां पे जब भी परवाना आता है
रुक जाये धूप हवा या पानी यारो
काँटों को ‘सरु ‘कब मुरझाना आता है