#बाउंसर :-
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■ जो हुआ, हमने किया…!
【प्रणय प्रभात】
आपको वो लतीफ़ा तो याद ही होगा। पहली बार ट्रेन में सवार एक देहाती ने देशी घी की केटली ट्रेन रोकने वाली चैन से लटका दी। ट्रेन रुकने पर जब बाक़ी यात्रियों ने इसकी वजह केटली को बताया तो देहाती तुरन्त इसे अपने घी की ताक़त बता कर उछलने लग गया।
यही हाल हमारे आपके छुटभैये नेताओं का है। जो इसी तरह किसी भी काम को अपनी उपलब्धि मान कर नाचने लगते हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि कई काम प्रोटोकॉल और प्लानिंग के तहत भी होते हैं। ख़ास कर चुनावी साल में। फिर चाहे वो “लॉलीपॉप ब्रांड” हों या “झुनझुना छाप।”
तो जित्ती जल्दी समझ जाओ, उत्ता ठीक है। न कछु तुम्हाए चीखबे ते हो रओ है, न हमाए चिल्लाबे ते। जे सब चुनावन की मेहरबानी है। भूल कैसे जाते हो बार-बार, कि ख़ैरात भी तभी बंटती है, जब कमीज़ के साथ-साथ पतलून भी फटती है। तो प्यारों, झूठ-मूठ में ताल ठोकना और गाल बजाना बंद करो और रेवड़ी का स्वाद लेने दो, लोग-बागों को। मान लो कि जो हो रहा है, वो चुनाव करा रहा है। यही एक सीज़न है, जिसमें सांड “दूध” देते हैं और गूलर के पेड़ “फूल।” बाक़ी सब फ़िज़ूल।।
जय ताऊ,,,जय भाऊ।।
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)
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