*बांहों की हिरासत का हकदार है समझा*
बांहों की हिरासत का हकदार है समझा
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बांहों की हिरासत का हकदार है समझा,
पूरी ही रियासत का सरदार है समझा।
आएंगे सदा बन कर गम में सहारा हम,
डूबी मध्य किश्ती का पतवार है समझा।
पाओगे हमें दुख में कोने – किनारे पर,
राहों में हिफाजत का किरदार है समझा।
कैसा भी रहे मौसम हम पास हों तेरे,
पतझड में हरा पौधा फलदार है समझा।
आ जाऊं हिमायत में पंछी गगनचर सा,
खंजर सा बना हरदम तलवार है समझा।
मनसीरत न समझो बेगैरत कहीं दर पर,
खुद्दारी भरी भावों में खुद्दार है समझा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)