बांट लो गम दोस्तों से
भूलकर इस दुनिया के गम
कभी जश्न भी मनाया करो
जब लगती है दोस्तों की महफिल
कभी उसमें भी आया करो
तेरा गम भी अलग है नहीं
बांटकर दूर हो जाएगा वो भी
आज़मा कर देख दोस्तों को
तेरे साथ खड़े हैं आज वो भी
कबतक अकेले लड़ते रहोगे
ये गम दोस्तों से छुपाया न करो
दोस्तों को, शर्मों हया की चादर
तुम कभी भी दिखाया न करो
थक गया है, निराश लग रहा है
अब दोस्तों से ही तुम्हें नई ऊर्जा मिलेगी
मुरझा गया है जो चमन आज
मिलकर दोस्तों से उसमें नई कोंपलें खिलेगी
कुछ नहीं तो मिलकर अपने
बचपन के किस्से ही सुनाया करो
कुछ देर के लिए ही सही
अपने गमों को भूल जाया करो
मिलकर दोस्तों से, आपस के
गिले शिकवे भी मिटाया करो
कौन जाने किस घड़ी साथ छूट जाए
कभी कभी गले लग जाया करो।
न कर अब और इंतज़ार तू
महफिल में हो जा शामिल तू
मिल बांटकर खुशियां मनाएगा तो
गमों से हो जाएगा आज़ाद तू।