बांझ औरत
जब दूसरे चमन पर आती है, बहार तो मुझे भी लगता है,
कभी तो आएगी मेरे चमन पर भी फूलों की बहार ..
पौधे से तो बन गई मैं कली पर बन ना पाई फूल
माली ने तो खूब मेहनत करी पता नहीं कहां हो गई भूल
जब देखती हूं लहराते फूलों को तो जी खिल उठता है
मगर अपनी बेबसी पर रोना भी निकल पड़ता है
साल दर साल यूं ही बीत जाते हैं मौसम प्यार के
मगर मेरे चमन पर ही ना खिल पाए दो फूल प्यार के
इस बार भी आया मौसम बाहर का ,
मगर मुझ पर ही ना आई बहार……
मैं वह कली हूं जो कभी फूल ही ना बन पाई।।
उमेंद्र कुमार