बाँहों मि गिरफ्त
**** बाँहों की गिरफ्त (ग़ज़ल) ****
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बाँहों की गिरफ्त में जोबन आया है ,
तब से आँखों मे मय का ही साया है।
नजरों के नज़राने के भी क्या कहने,
मयखानों में भी सूनापन छाया है।
ना जग में कोई है प्रीतम के जैसा,
संगत साजन के जैसी ना माया है।
हाथों से मैला होता चंदन सा तन,
हीरों से भी ज्यादा सुंदर काया है।
अंधेरों में खोया आदम का सौदा,
तारों से ले कर जलती लौ लाया है।
मनसीरत मन के नैनों से रोता है,
सालों की कोशिश से तुमको पाया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)