बाँट रहा खैरात
औरों का हक मारकर,बाँट रहा खैरात !
करे पीठ पर देश की,..ऐसे ही आघात !!
बने निकम्मी शर्तिया, सचमुच वहाँ अवाम ।
बिना परिश्रम बन गये, जहाँ समूचे काम ।।
रमेश शर्मा.
औरों का हक मारकर,बाँट रहा खैरात !
करे पीठ पर देश की,..ऐसे ही आघात !!
बने निकम्मी शर्तिया, सचमुच वहाँ अवाम ।
बिना परिश्रम बन गये, जहाँ समूचे काम ।।
रमेश शर्मा.