बह रही थी जो हवा
गीत..
बह रही थी जो हवा सीधी बहकने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
तुम सजाये आ गये जो केसुओं के फूल हो।
भा रहा श्रृंगार मंजुल तुम सृजन के मूल हो।।
रागिनी भी राग अपनी अब बदलने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
कर रही स्वागत दिशायें बल्लरी नव रूप से।
अर्चनाएं लग गई करने शिखायें धूप से।।
सारिका हर्षित हुए उपवन विचरने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
मिल गया संदेश जबसे हो रहा है आगमन।
लग गई करने धरा ये भव्यताओं का वहन।।
बालियां गोधूम की सुस्मित लहरने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
लेखनी में कल्पनाएं रंग रुचि भरने लगी।
मंद मृदु मुस्कान से तरुणी हृदय हरने लगी।।
भावनाएं देखकर उनको मचलने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
बह रही थी जो हवा सीधी बहकने लग गई।
वादियाँ खुशबू लिए सारी महकने लग गई।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)