बह रही ज़िंदगी
दो किनारों की तरह बह रही ज़िंदगी,
शांत,गुमसुम,घबराई ज़िंदगी,
एक सन्नाटा सा पसरा चारों ओर,
न आज का पता न भविष्य की खबर,
मन में घबराहट,
दिमाग में खलबली,
आज उसकी गली,
कल मेरी गली,
फिर भी बह चली ज़िंदगी,
ठहरा कालचक्र भी,
गति पहिए की थम चली,
मांगे सब अपनों की खैर
और सबकी तबियत भली,
भय के साए में सुबकती,
फिर भी बह चली ज़िंदगी,
बह रही ज़िंदगी……..