बहू
नमन मंच
काव्यांचल साहित्यिकसंस्था
दिनांक 20/11/2020
विषय – लघुकथा।
शीर्षक – बहू
नई बहू को घर मेंआये हुए कुछ ही दिन हुए थे। उन दिन के रंगों को कैसे भूल सकती है सुधा। क्यों कि वह बीमार तो पहले से ही थी। उसे तो बहू से सहारा ही मिला रात को थोड़ी देर सास के पास बैठकर बहू जब सोने चली तो उसने कहा मम्मी कोई परेशानी हो तो आवाज लगा देना।बहू को गए 10 मिनट भी नहीं हुए की सुधा को बहुत तेज उल्टी हुई सारा खाना निकल गया। बहू बेटा दोनों तुरन्त बाहर निकले अरे मम्मी!क्या हुआ ?बेटे ने तुरंत बी. पी. चैक किया। काफी बढ़ा हुआ था। उसने दवा दी।आज सुधा मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी।उसने बहू से एक बात कही कि बेटा जिस दिन मैं सुबह को तुम्हें लेटी हुई दिखूँ।तो समझ लेना कि माँ की तबियत ठीक नहीं है। क्यों कि बेटा मम्मी कभी बेबजह नहीं लेटती हैं। बहू ने जी माँ कहकर स्वीकृति में सिर हिला दिया।
प्रवीणा त्रिवेदी प्रज्ञा
नई दिल्ली 74