*बहू- बेटी- तलाक*
राजाराम जी ने अपने बेटे संजय का विवाह अपने रिश्तेदार की पुत्री शुशीला से तय किया था. दोनों परिवारों में जान-पहचान होने के कारण किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी, शुशीला की दादी पिछले एक डेढ़ साल से कह रही थी कि शुशीला को घर के कामों में रूचि लेने दो, ससुराल में जायेगी तो तकलीफ कम होगी. शुशीला खुद इस बात की समझती थी इसलिए वो बड़ी लग्न के साथ खाना बनाना, सिलाई करना, मेंहदी लगाना सीखने लगी. सगाई होने के बाद दादी का रोज रोज कहना उसकी मम्मी को पसंद नहीं था वो कहने लगी कि हमारी बिटिया तो राज करेगी राज. आप भी तो राजाराम जी और उनके परिवार को जानती हो, दादी हाँ करते हुए कहती कि बहू सीखने में क्या बुराई है जरूरत पड़ने पर शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा. मगर उसकी माँ को ये बात कम जचती थी. इसलिए सब कुछ सीखने के बाद भी वो शुशीला को नहीं के बराबर काम करने देती थी.
उधर राजाराम जी के कोई लड़की नहीं थी तो उनकी पत्नी माया सोचती थी कि चार लोगों के लिए कितना काम होगा इतना तो मैं अकेली कर लूगी और जरूरत पड़ी तो कामवाली रख लेंगे मगर बहु को बेटी की तरह रखूंगी. उससे काम नहीं करवाउंगी.
नियत तिथि को नियत मुहूर्त में संजय और शुशीला का विवाह संम्पन्न हुआ. बड़े हर्षोल्लास के साथ सास ने बहु का स्वागत किया. सप्ताह भर तो मेहमानों का जमावड़ा रहा इसलिए नई बहू को सजने संवरने से ही फुर्सत नहीं मिलती थी मगर सब के चले जाने के बाद भी राजाराम जी की पत्नी ने अपनी बहू को कोई काम करने की अनुमति नहीं दी. शुशीला ने संजय से इस बारे में चर्चा की तो वो भी कुछ नहीं बोला. एक दिन दादी की तबियत खराब होने पर उसका हालचाल पूछने के लिए वो मायके गई. 3 दिन बाद अचानक संजय के नाम एक वकील का ख़त आया जिसमे तलाक का नोटिस था. सब कुछ इस तरह से हुआ कि दोनों परिवारों में किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. पूरे मोहल्ले में बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई. कोई संजय में कमी बता रहा था तो कोई शुशीला की. लेकिन असली वजह किसी को नहीं पता थी. राजाराम जी के एक रिश्तेदार, जिनका दोनों घरों से रिश्ता था वे आये शाम को और राजाराम जी के पूरे परिवार को लेकर शुशीला के घर गए. वहां उन्होनें तलाक के बारे में पूछा तो किसी को कुछ पता नहीं था सिवाय शुशीला के. उन्होंने शुशीला से इस बारे में पुछा और शुशीला ने जो कहा उससे सबके आँख कान खुल गये. शुशीला ने कहा कि मै एक बहू के रूप में उस घर में गई थी मगर वहां भी मुझे बहू की जगह बेटी बना लिया गया, चूँकि बेटी के रूप में तो मै इस घर में रह ही रही थी इसलिए मुझे उस घर में रहना अच्छा नहीं लग रहा था अत: मैंने तलाक का नोटिस भिजवा दिया.
यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी. ज्यादा जोर देने पर शुशीला ने बताया कि विवाह और उसके बाद की जिन्दगी को लेकर मेरे मन में बहुत उत्साह था. मैंने मेरी सहेलियों से काफी कुछ सुन रखा था. जब मेरा विवाह हुआ और मैं अपनी ससुराल गई तो मैंने जो देखा, पाया, और महसूस किया वो सब मेरी जानकारी के विपरीत था. एक सप्ताह तक तो मैंने इन्तजार किया मगर उसके बाद भी मुझे किसी काम को हाथ लगाने की अनुमति नहीं मिली तो मेरा मन विचलित होने लगा मैंने सासू माँ से बात की तो उन्होंने यह कहते हुए कि थोडा सा ही तो काम है ये तो मैं ही कर लूंगी, तू आराम कर और काम करने की इजाजत नहीं दी. फिर मैंने संजय से बात करने का प्रयास किया लेकिन उसने भी बात को टाल दिया. तब मैंने दादी से बात की और उनसे मुझे यहाँ बुलाने की प्रार्थना की तो दादी ने अपनी बिमारी का बहाना बना कर मुझे यहाँ बुला लिया. यहाँ भी किसी ने मेरे मन की बात जानने की कोशिश नहीं की सिवाय दादी के. मैंने उन्हें अपने ससुराल में बहू की जगह बेटी बनने की बात बताई तो वो भी खुश हुई और मेरे सास ससुर को ढेरों आशीर्वाद देने लगी. जिससे मेरा चेहरा उतर गया. मैंने अपनी बात बताई तो उन्होंने शर्मा अंकल से कह कर आप लोगों को यह नोटिस भिजवाई है. यह सब मेरा नहीं दादी का किया कराया है…
अब दादी से बात कौन करे…
मगर जरूरी था इसलिए सब लोग दादी के कमरे में गए, दादी तो मानो उन्ही का इन्तजार कर रही थी. छुटते ही बोली राजाराम जी और माया जी मुझे आप जैसे समझदार लोगों से ऐसी आशा नहीं थी. राजाराम जी ने हाथ जोड़ कर पूछा ऐसी क्या गलती हो गई कुछ तो खुल कर बताइये. तब दादी ने कहना शुरू किया. आप लोगों ने सबसे बड़ी भूल यह की कि एक बहू को आपने बेटी मान लिया, माना वो तो ठीक मगर आपने उसके साथ बेटी जैसा व्यवहार भी करना शुरू कर दिया. लोग बहू क्यों लाते हैं ताकि वो सास का हाथ बटाये, घर का काम करे, घर संभाले, ना कि दिन भर बैठी मोबाइल चलाये, टीवी देखे, या पड़ोसियों से गप्पे लड़ाए. शुशीला यहाँ थी तो उसका सब के साथ 20 सालों का सबंध था, सब उसे जानते थे, विवाह से पहले वो दिन भर घूमती थी, सहेलियों के साथ बतियाती थी तो सब ये मानते थे कि जो करती है वो करने दो, ससुराल में जायेगी तो अपने आप खूंटे से बंधी गाय हो जायेगी. आप सब समझ रहे हो ना मेरी बात. शुशीला की सास बोली माँ जी गलती तो हुई है मुझसे अब आप ही बताइए इसको कैसे सुधारें. दादी ने कहा आपको करना कुछ नहीं है सिर्फ माँ से सासू माँ बनना है. अगर नहीं बन सकती तो एक महीना मुझे अपने घर ले चलो मै बता दूंगी सास कैसी होनी चाहिए, सभी के चहरे पर मुस्कान दौड़ने लगी. दादी ने शुशीला से कहा आज सब के लिए भोजन का प्रबंध तुम करोगी, हम सब बैठे रहेंगे…