बहू और बेटी
बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं,
होनी चाहिए मां की आंख की तारा।
एक बेटी ब्याही और दुजी घर आई ,
पक्षपात क्यों करे दिमाग हमारा?
दोनो के हैं समान अधिकार घर पर ,
परंतु क्यों करें बहू का इनसे किनारा ?
बहू का अधिकार अपितु सबसे अधिक ,
क्योंकि वृद्धावस्था का है यही सहारा ।
पुत्र ,पुत्री की तरह बहु भी तो संतान है ,
जिसे समाज के समक्ष आपने स्वीकारा।
आपके लाड़ प्यार की बहू भी है हकदार ,
खयाल रखें उसका भी बनाएं रिश्ता प्यारा ।
बहू के अधिकारों में न हो कोई हस्तक्षेप ,
अतः उसे दें प्रेम और विश्वास का सहारा।
केवल बहू को कर्तव्य की बेड़ियों में न बांधे ,
बेटी को भी हो अपने कर्तव्यों का ज्ञान सारा ।
आपके बाद भी यह रिश्ता संतानों का बना रहे,
अतः प्रेम का बीज इनमें बोएं ताकि गुलशन बने प्यारा प्यारा ।