बहु की अच्छाई
आज भी रागिनी हमेशा की तरह ऑफीस से देर से आई, वह भोपाल में शासकीय कार्यालय में कार्यरत थी । अरे ये क्या दीपू को तो वो झुलाघर से लाना ही भूल गयी । तीन साल का तो था दीपू , देर हो गई थी रागिनी को चिंता सता रही थी । मोबाइल चार्ज नहीं हुआ था , ऑफिस के काम में भूल गयी तो फोन भी नहीं कर पाई । बस वो उसे लेने पहूंची ही थी, तो उसे मालूम चला कि दीपू मस्ती करते करते गिर गया और उसे काफी चोट लगी थी सो अस्पताल ले जाना भी जरूरी था ।
रागिनी दीपू को लेकर अस्पताल पहूंची ही थी कि घर से सासु मां का फोन आ गया, कहने लगी बहु कहां रह गई, आयी नहीं अभी तक । जी मां जी, आ रही हूं, अस्पताल दीपू की ड्रेसिंग करवाकर, गिर गया न वो खेलते हुए । मां जी ने कहा बहुत जल्दी आना खाना बनाने का टाईम जो हो रहा है और ससुर जी के दवाई का भी । उन्होंने दीपू के बारे में पूछना भी जरूरी नहीं समझा ।
रागिनी मन ही मन सोच रही थी , क्या हुआ मां जी को दीपू उनका भी तो नाती है । पर उन्हें क्यो कोई फर्क पड़ता, ननंद सुषमा जो आने वाली थी , दिल्ली से बच्चों के साथ , ग्रीष्मावकाश था बच्चों का सो मां जी उन्हीं के इंतजार में मशगूल थीं ।
इतने में राहुल का मुंबई से फोन आया कि इस सप्ताह कुछ उपयोगी मीटिंग है तो वह घर नहीं आ पायेगा । रागिनी ने दीपू के बारे में बताया, राहुल ने बस कहा कि ध्यान रखना सबका ।
क्या करती रागिनी दीपू को लेकर घर आई । सबके लिए खाना बनाया , ननंद सुषमा जो आ चुकी थी , बस फिर क्या था रागिनी ने सबको खाना खिलाया और सुबह ड्यूटी जाने की तैयारी कर ही रही थी कि दीपू दर्द के कारण रोने लगा । पर ये क्या न कोई उसे गोद में ले रहा और ना ही चुप करा रहा । जैसे तैसे उसने दीपू को चुप कराकर सुलाया और सो गयी ।
सुबह हुई नहीं कि सबकी फरमाइशे शुरू हो गई न , किसी को चाय तो नाश्ता तो किसी को स्पेशल कुछ खाना है । घर में किसी को न दीपू से मतलब और ना ही रागिनी की नौकरी से । आज ड्यूटी गई नहीं सो अफसरों की डांट अलग सुनो । यहां तक कि सासु मां ने बहु से पहले ही कह दिया था तुम ड्यूटी करती हो तुम तुम्हारी जानों , बच्चे को हम ना देख पाएंगे और ना ही तुम्हें मदद । फिर भी रागिनी अपनी जिम्मेदारी कर ही रही थी ।
तीन दिन बीत गए, दीपू की चोट ठीक नहीं हो रही थी, तो रागिनी उसे फिर उपचार हेतु अस्पताल ले गई । इसी बीच राहुल आने वाले थे उनका फोन भी आ चुका था रागिनी को। । वह दीपू को लेकर घर आई तो देखा कि राहुल आने चुके थे और मां जी बहु की शिकायतें कर रहीं, खाना नहीं बनाया, ननंद सुषमा का ध्यान नहीं रखा, ससुर जी की दवा का ध्यान नहीं रखा और खाना मां जी को बनाना पड़ा ।
अब रागिनी के सब्र का बांध टूट सा गया, और वह चुप नहीं रही, बोली मां जी आजकल एक की कमाई में घर नहीं चलता, तो मैं नौकरी भी करूं , परिवार के सभी कार्य करूं, मेहमानों का स्वागत भी मैं ही करूं , घर में सभी को काम में हाथ बंटाना चाहिए वैसे तो तब भी मैं कुछ नहीं बोली पर आप बताइए दीपू को इलाज कराने ले गई तो इसमें मेरी क्या गलती। । मैंने खुद का ध्यान नहीं रखा और सभी जिम्मेदारियों को निभाते रही मां जी , आपको मेरी अच्छाईयां नहीं दिखाई दी मां जी …… राहुल अवाक रह गए और मन ही मन सोच रहे थे कि सही कहा रागिनी ने ।
कैसी लगी यह कहानी आप सभी पाठकों से निवेदन है कि बताइएगा जरूर । धन्यवाद आपका ।