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15 Oct 2024 · 5 min read

बहुरानी

तेजश्री शादी करके ससुराल आई तो सब उस पर फ़िदा हो गए । जो भी मिलता कहता, ‘ कितनी सुंदर है, कितनी पढ़ी लिखी है, मनीष की तो क़िस्मत ही खुल गई, यह लड़की सब सँभाल लेगी ।’

तेजश्री सब सुन रही थी और उसके भाव अस्पष्ट थे, कभी तो वह आत्मविश्वास से भर उठती और कभी वह डर जाती कि कभी जब सबको पता चलेगा कि उसमें इतने गुण नहीं हैं , तो क्या होगा!

वह मनीष से पूछती, “ तुम क्या सचमुच मुझे इतना अच्छा समझते हो ।”
“ हाँ । “ और वह मुस्करा देता ।
“ तो मेरी तारीफ़ करो न ।”

बेचारा मनीष तारीफ़ करते करते थक जाता, परन्तु तेजश्री के बेचैन मन को शांत नहीं कर पाता ।

दिन बीतने लगे , और तेजश्री की कमियाँ भी सबको नज़र आने लगी । अब उसकी क़ाबिलियत घमंड लगने लगी, उसका रूप अर्थहीन हो गया , और वह परिवार में क्लेश का कारण बन गई ।

तेजश्री भी ग़ुस्से से भरने लगी । यह अपमान वह क्यों सहे ? उसने मनीष से कहा, “ तुम मुझे तलाक़ दे दो , तुम्हारे परिवार की अशांति का कारण मैं नहीं बनना चाहती । “

“ तुम यदि उनके साथ नहीं रहना चाहती तो हम अलग हो जाते हैं ।” मनीष ने सहजता से कहा ।

“ ऐसे कैसे, यदि तुम अपने परिवार को छोड़ सकते हो तो कल मुझे भी छोड़ सकते हो । “

मनीष हंस दिया, “ मैं उन्हें छोड़ नहीं रहा हूँ, बस अपनी प्राथमिकता बदल रहा हूँ, जो स्वाभाविक है। “

तेजश्री को यह बात अच्छी लगी , और उसने सहारा पाकर अपने मन का ग़ुबार मनीष के सामने खोलना शुरू कर दिया । उसने कुछ ही पलों में अपनी सास , ससुर , नंद , बाक़ी के रिश्तेदारों का वह रूप दिखा दिया, जो मनीष ने कभी नहीं जाना था । मज़े की बात यह थी कि इस नए मिले ज्ञान से वह एकदम से सहमत भी हो गया, उसने तेजश्री को पास खींचते हुए कहा, “ यह बातें आपको शादी से पहले समझ नहीं आती , असलियत शादी के बाद समझ आती है।”

तेजश्री इस समर्थन से थोड़ी शांत हो गई ।

अब तेजश्री जब भी मनीष के साथ होती, वह यही बातें करती रहती, वह भरसक विषय बदलता पर वह किसी न किसी तरह घर में हो रही उसकी मुश्किलों पर लौट आती ।

एक दिन मनीष घर आया तो उसने देखा, तेजश्री अपना सामान बांध रही है ।

“ कहीं जा रही हो क्या?”
“ हाँ । माँ के पास, आफिस से छुट्टी ले ली है , एक सप्ताह मैं वहाँ जाकर आराम करना चाहती हूँ , बहुत थकावट हो रही है आजकल।”
“ मुझसे बात करना ज़रूरी नहीं समझा तुमने ?”
“ बता तो रही हूँ ।”
“ माँ को बताया?”
“ नहीं , जाने से पहले बता दूँगी ।”

मनीष बाहर आ गया, थोड़ी देर बाद तेजश्री भी अपना सूटकेस लेकर आ गई । उसने सास से कहा,
“ मैं मायके जा रही हूँ, एक सप्ताह में आ जाऊँगी । “

वह चली गई तो सास ने मनीष से कहा, “ पहले बता देती तो मैं इतना खाना न बनाती ।”

“ अरे माँ , खाना क्या इतना महत्वपूर्ण है?” वह भी चिड़चिड़ाकर बाहर चला गया ।

माँ को बहुत अपमान अनुभव हुआ, उन्होंने बेटी से कहा , तो वह बोली, “ एडल्ट है वह, तुमसे पूछकर थोड़ी जायेगी ।”

तेजश्री को मायके जाने पर पता चला वह गर्भवती है, उसने मनीष को फ़ोन किया और कहा , घर में अभी किसी को न बताना , समय आने पर अपने आप पता चल जाएगा ।

मनीष की इच्छा थी कि वह दौड़कर यह ख़ुशख़बरी सबको सुनाए, परन्तु तेजश्री की भावनाओं का सम्मान करते हुए वह चुप रहा । तेजश्री मनीष के साथ डाक्टर से मिलती रही, तीसरा महीना पूरा होने वाला था कि तेजश्री की माँ का फ़ोन आ गया, जिसे मनीष की माँ ने उठा लिया, और बातों बातों में वह कह गईं कि तेजश्री गर्भवती है।

उस दिन सास को पहली बार अनुभव हुआ कि एक साथ कितनी भावनायें उनके भीतर घिर गई हैं, वह वहाँ बैठ गई, और अपने आंसुओं को बह जाने दिया, सोचा, इससे कुछ भाव तो तिरोहित होंगे, फिर वह बचे हुए भावों को सुलझाने की कोशिश करेंगी ।

उस दिन शाम को जब तेजश्री आफिस से वापिस आई तो अस्वस्थ थी । सास ने सारा खाना बनाया , पर वह सोच रही थी, मैं इसकी नौकरानी तो हूँ नहीं , अगर इतनी बड़ी बात छुपा सकती है तो इसका और मेरा नाता ही क्या है !”

सास ने भी बहु से बात करनी बंद कर दी । अब शीत युद्ध प्रारंभ हो गया, एक ही घर में जैसे दो गृहस्थियाँ बसी थी । घर का वह खुला ख़ुशनुमा वातावरण चुप्पी और भभकती आँखों में बदल गया ।

तेजश्री को लग रहा था कि मनीष कहता कुछ नहीं, पर पहले जैसा उन्मुक्त नहीं रहा। आने वाली डिलीवरी के लिए भी वह चिंतित थी, माँ ने कह दिया था कि पहला बच्चा ससुराल में ही जन्मता है। वह उसे दिन रात हिदायत दे रही थी, वह चाहती थी कि तेजश्री ससुराल वालों से बनाकर रखें, अच्छे घर की लड़कियाँ यही करती हैं । तेजश्री को लगता था, उसने ऐसा क्या ग़लत किया है जो सबके मुँह फूले हैं ।

मनीष ने अपने पिता से बात की, “ पापा, आप कुछ कीजिए, इनके झगड़े से बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा ।”

“ हुं ।”

उनकी ‘हुं’ से मनीष समझ गया, कुछ होने वाला नहीं है।

एक दिन मनीष माँ के कमरे में आया , और पुराने दिनों की तरह बातें करने लगा, माँ को लगा, बेटे की ख़ुशी के लिए उन्हें इस झगड़े को समाप्त कर देना चाहिए । उन्होंने तेजश्री से बातचीत आरम्भ कर दी, तेजश्री को भी लगा, मनीष के लिए उसे भी कोशिश करनी चाहिए , परन्तु वह देख रही थी हर बार यह कोशिश असफल हो जाती थी, कुछ दिन ठीक से बीतते, फिर चुप्पी हो जाती, फिर वही सिलसिला होता ।

एक दिन वह शाम अपने घर जाने की बजाय माँ के घर चली गई, माँ ने पूछा,” घर बताकर आई है ?”
“ नहीं ।”
“ क्यों नहीं ?”
“ क्यों , क्या मैं छोटी बच्ची हूँ ?”
“ नहीं , तो क्या तूं नहीं चाहती वे लोग तेरी परवाह करें ।”
तेजश्री को बात समझ आ गई और उसने घर फ़ोन कर दिया ।

तेजश्री जाने लगी तो माँ ने कहा, “ तेरे लिए भी आसान नहीं है, नए माहौल में खुद को ढालना, पर यदि तूं यह मान ले कि घर ही वह जगह है, जहां किसी भी और चीज़ से ज़्यादा ज़रूरी है, एक साथ रह पाने के तरीक़े ढूँढना, तो तूं यह कर पायेगी ।”

“ और यदि मैं मनीष के साथ अलग हो जाऊँ तो ।”
“ हो सकती है, पर यह समस्या तो कल मनीष के साथ भी आयेगी, जो बुराइयाँ अब तुझे परिवार के बाक़ी जनों में नज़र आ रही हैं वह सारी मनीष में आने लगेंगी ।”

तेजश्री हंस दी , “ यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई माँ ?”
“ क्योंकि यह बात मुझे भी अभी समझ आई है ।” और वे दोनों हंस दी ।

——- शशि महाजन

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