बहुरानी से महारानी
हाथों में मेहंदी रचा कर
बालों में गजरा डाल कर
आँखों में सपने सज़ा कर
मैं बन बहुरानी
पहुँची अपने ससुराल …..
सासु माँ ने की आरती
लगाया तिलक और बोलीं
आई हो पराए घर से
पर घबराओ मत
इसे भी अपना ही घर समझना ….
पर हाँ जैसे जैसे मैं समझाऊँ
बस वैसे ही करती रहना
तब जा कर समझा की
राज्य तो इनका ही है
हम तो सिर्फ़ नई बहुरानी हैं…
घर तो इनका ही हैं
हम तो सिर्फ़ कहना मानने ही आई हैं ..
पर हमने भी कर दिया सब समर्पण
प्यार दिया सम्मान दिया
सबका पूरा आदर सत्कार किया
धीरे धीरे उस घर को
अपना समझने की कोशिश की
और जीवन संवार लिया …
देखते ही देखते कब वो चाबी का गुच्छा
सासु माँ ने हमको सौंप दिया
समझ ही नहीं आया …
कब उस घर को अपना बनाते बनाते
अपना ही समझने लगे , पता नहीं चला ….
और आज , जब हम भी अपनी बहुरानी को घर लाए
तिलक लगा कर आरती की प्रथा चलाई
तो एक बात दिल से आई
बहुरानी से महारानी का सफ़र हमारा अब ख़त्म हुआ
अब राज करने की हमारी बारी आई ….