*बहुमुखी प्रतिभा के धनी : साहित्यकार आनंद कुमार गौरव*
बहुमुखी प्रतिभा के धनी : साहित्यकार आनंद कुमार गौरव
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आनंद कुमार गौरव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी साहित्य को आपने दो उपन्यास तथा तीन काव्य संग्रह प्रदान किए हैं। जन्म 12 दिसंबर 1958 को बिजनौर जनपद में हुआ। मात्र पैंसठ वर्ष से कुछ अधिक ही आपका जीवन रहा। 18 अप्रैल 2024 को निधन हो गया।
जन्म स्थान कहे जाने का गौरव तो बिजनौर जनपद को प्राप्त हुआ ,लेकिन प्रारंभिक शिक्षा से लेकर इंटर तक की पढ़ाई बरेली में हुई। मुरादाबाद से उच्च शिक्षा ग्रहण की।
वर्ष1981 में प्रथमा बैंक में लिपिक नियुक्त हुए तथा सहायक प्रबंधक पद से इसी बैंक से सेवानिवृत हुए। मुरादाबाद आपकी कर्मभूमि रही। आकाशवाणी रामपुर और दिल्ली दूरदर्शन से आपके कार्यक्रमों के प्रसारण हुए।
पहला उपन्यास 1984 में ऑंसुओं के उस पार छपा। दूसरा उपन्यास 1997 में थका हारा सुख प्रकाशित हुआ। काव्य के क्षेत्र में 1985 – 86 में गीत संग्रह मेरा हिंदुस्तान कहॉं है प्रकाशित हुआ। मुक्त छंद की कविताओं का संग्रह शून्य के मुखोटे 2009 में प्रकाशित हुआ। अंतिम गीत संग्रह 2015 में सॉंझी सॉंझ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। लेखन के साथ-साथ मुरादाबाद के विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में आपकी सक्रिय भागीदारी रही।
आपकी कविताओं में एक जुझारुपन है। मनुष्य का अपने परिवेश से अप्रासंगिक हो जाना आपको अखरता है। आपने समाज पर चारों तरफ निगाह दौड़ाई और पाया कि सब अपने-अपने लिहाफ में दुबके हुए हैं। कोई घर के बाहर चुनौतियों से जूझने नहीं आ रहा। यह परिस्थितियॉं सब प्रकार से देश, काल परिस्थितियों में पाई जा सकती हैं। और आनंद कुमार गौरव का लेखन इन परिस्थितियों में सदैव प्रासंगिक रहेगा। शांत शहर शीर्षक से गीत के बोल इस प्रकार हैं:
एक भगदड़-सी मची है
शहर फिर भी शांत है
आज मानव के लहू का
चुप रहो सिद्धांत है
हाथों में बड़ी-बड़ी डिग्रियॉं लेकर बेरोजगार घूमते युवकों को जब आपने देखा तो वह परिदृश्य भी आपकी लिखनी में आक्रोश के साथ उतर कर आया। सब प्रकार के लुभावने नारों का माया-जाल नेताओं को आपने बुनते हुए देखा और फिर आपके कवि-मन ने इस समूची व्यवस्था को नारों की भीड़ उगाने की संज्ञा दे डाली:
शहरों गाँवों में गलियों में चौराहों पर
भटक रही शिक्षित पीढ़ी निरीह राहों पर
सौंप दी व्यवस्था ने डिग्री बेकारों की
भीड़ उगी है नारों की
मन की सुकोमल भावनाओं को आनंद कुमार गौरव के कवि ने बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। कई बार मन और तन की लय सधकर नहीं बैठ पाती । शरीर अपनी क्रियाएं करता है लेकिन मन कहीं और व्यस्त है । इस अवस्था को कम से कम शब्दों में केवल आनंद कुमार गौरव ही व्यक्त करने में समर्थ थे। एक गीत के मुखड़े में उन्होंने लिखा:
मन टँगा है अरगनी पर
देह की लय अनमनी है
ऊॅंचे दर्जे के संस्कार सौंपने का काम भी कवि को ही करना होता है। हृदय को विशाल बनाने की प्रेरणा जब तक जन-जन को नहीं दी जाएगी, कवि कर्म अधूरा रहेगा। आनंद कुमार गौरव ने उच्च लक्ष्यों को लेकर काव्य-रचना भी की और स्पष्ट शब्दों में पाठकों और श्रोताओं को ऐसा संदेश दिया जिसके आधार पर हम एक आदर्श समाज, परिवार और राष्ट्र निर्मित कर सकते हैं। आइए उनके एक गीत की कुछ पंक्तियों को क्यों न अंतर्मन से हम भी दोहराएं:
द्वेष क्लेश मिट जाएँ ऐसा गीत रचें
मैं तुम हम हो जाएँ ऐसा गीत रचें’
दोष क्या मेरा शीर्षक से गीत में कवि का निर्मल हृदय झॉंंक रहा है। उसका प्रेम सच्चा है। यह अलग बात है कि उसे प्रेम में अभीष्ट की प्राप्ति नहीं हुई। इस स्थिति को कवि ने गीत के माध्यम से इस प्रकार कह डाला कि यह किसी एक मन की नहीं अपितु सहस्त्रों हृदयों की पुकार बन गई:
मैंने तो महके गुलाब से भरा हुआ पौधा सौंपा था
हाथ तुम्हारे काँटों तक ही रहे, दोष इसमें क्या मेरा
साहित्य के माध्यम से जो विचार समाज को सौंपे जाते हैं, उनकी गूॅंज व्यक्ति के नश्वर शरीर के नष्ट होने के बाद भी लंबे समय तक बनी रहती है। आनंद कुमार गौरव को उनकी रचनाओं के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा।
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( यह लेख साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह पर 12 दिसंबर 2024 बृहस्पतिवार को प्रस्तुत सामग्री के आधार पर तैयार किया गया है। इसके लिए ग्रुप एडमिन डॉक्टर मनोज रस्तोगी को हृदय से धन्यवाद। )
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451