बहुत रोने का मन करता है
बहुत रोने का मन करता है-
हाँ ,ममा,
आपसे मिलने का जी करता है।
बहुत दिन हो गए-
दिन नहीं वर्षों हो गए,
अब तो आ जाएं-
मुझे मिलने,
अकेले जान मन अस्थिर होता है,
हाँ, माँ आपसे मिलने का जी करता है।
थक गई हूँ –
जीते – जीते,
आपके साथ बातें,
करने का जी
करता है।
हाँ, ममा,
आपसे मिलने का जी करता है।
जानती हूँ आप नहीं
आएंगी-
किंतु न जाने क्यों,
मन अपना ही इस झूठी इच्छा से-
बहलाने का जी करता है
हाँ, ममा आपसे मिलने का जी करता है।
बहुत मुश्किल हो गया है –
अब खुश रहना,
दिखावी मुस्कान से-
मुँह मोड़ने का मन करता है,
हाँ,ममा आपसे मिलने का जी करता है।
स्वयं माँ हूँ –
जानती हूँ ,
जाना है आपकी तरह-
किंतु संतान अपनी को-
छोड़ने से मन डरता है,
हाँ, ममा आपसे मिलने का जी करता है।
क्या मेरे बच्चे भी –
ऐसा सोचते होंगे,
सोच – सोच के –
जीने का मन करता है,
हाँ,ममा आपसे मिलने का जी करता है।
दिन कटता है –
याद कर – करके आपको,
बेटी आपकी हूँ सोच-
मन गर्व करता है,
किंतु
आपसे मिलने का जी करता है।
काश आ जाएं आज –
सपने में मेरे,
इच्छा कर फिर धबराकर कि-
सपना सच होगा या नहीं,
जाग – जाग के-
आपको सोचना अच्छा लगता है,
हाँ, ममा आपसे मिलने का जी करता है।
जीवन एक नाटक है-
हम पात्र है यहां,
जानकर भी अनजान –
जाने क्यूं होने का ,
तर्क न समझ आता है-
बहुत रोने का मन करता है,
हाँ,ममा आपसे मिलने जी करता है।
डॉक्टर परमजीत ओबराय।