बहुत याद आती है
बहुत याद आती है…..
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राजा रानी ओर परियो की
बिखरे मोती ओर लडियो की
कहती थीं जो एक कहानी
मेरी दादी नानी
वो मेरे मन मस्तिष्क पर छाती है
बहुत याद आती है,बहुत याद आती है ……..
कच्ची चकरोडो पर जब
गाड़ी दौडाता था
घूम रहा सारी दुनिया
खुद को पुस्पक में पाता था
वह सब यादें आज पुनः परीलोक ले जाती है ।….
बहुत याद आती है ,बहुत याद आती है….
वो संगी साथी मेरे
कितने अच्छे थे
मन के कितने प्यारे
मन के कितने सच्चे थे
जब देखूं तस्वीर पुरानी ,आँखें सजल हो जाती है।….
बहुत याद आती है , बहुत याद आती है ….
वो बचपन के मेले
अब कही नही दिखते
कोरे पन्नों पर
हम पीड़ा अपनी लिखते
बिन बोले ही सब कुछ ,आँखें मेरी कह जाती है।…
बहुत याद आती है …बहुत याद आती है…
बचपन में हमने भी
कुछ पौधे रोपे थे
प्रेम दया करुणा के
खुद को मोती सौंपे थे
गुम हुए, कहाँ सारे मोती
नहीं समझ में आती हैं ……..
बहुत याद आती है ,बहुत याद आती है।…
स्कूल गया जब पहले दिन
तब हूक उठी थी मेरे मन में
मास्टर के डंडे को देख
छुप जाऊँ माँ के आँचल में
मेरी यादें अक्सर मुझसे
यही बातें बतियाती हैं …..
बहुत याद आती है . बहुत याद आती है….
कितना सुंदर था मानव
कितना सुंदर था गाँव
मंदिर की घंटी टन टन
ओर पीपल की ठंडी छाँव
बूढ़े बरगद की दाढ़ी
अब भी गाथा गाती है……
बहुत याद आती है..बहुत याद आती है….
यादों के सिवा कुछ बचा नहीं
कुछ बिखर गया ,कुछ सिमट गया
हम भी दूर हुए उनसे ,वो भी हमसे दूर हुए
मेरे गाँव का भोला मानुस न जाने कहाँ गया
उन सब की यादें आती ,आकर बहुत रुलाती है।….
बहुत याद आती है , बहुत याद आती है ……
राघव दुबे ‘रघु’
इटावा (उ०प्र०)
8439401034