Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Nov 2021 · 13 min read

बहुत याद आएंगे श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट

बहुत याद आएंगे श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट नहीं रहे । 22 नवंबर 2021 को उन्होंने आखिरी सांस ली । रामपुर में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो ,जो बहुमुखी प्रतिभा की दृष्टि से उनका मुकाबला कर सके । वह बेजोड़ वक्ता थे । भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था । हिंदी और उर्दू दोनों के माहिर थे । एक चिंतक के रूप में विचारों को सारगर्भित रूप से प्रस्तुत करने में जहाँ उनको महारत हासिल थी ,वहीं वह विस्तार से किसी भी विषय को नए-नए आयाम देने में समर्थ थे । वकालत के पेशे में उन्होंने बहुत ऊँचा स्थान बनाया था ।
उनकी सबसे बड़ी खूबी एक लेखक के रूप में तब सामने आई ,जब उन्होंने रामपुर का इतिहास नामक पुस्तक लिखी और उसे रामपुर रजा लाइब्रेरी ने प्रकाशित किया। इस पुस्तक में नवाब रजा अली खाँ के 1930 में सत्तारूढ़ होने से लेकर रियासत के भारतीय संघ में विलीन होने तक की घटनाओं को विस्तार से दर्ज किया गया था। यह एक प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुका है और रामपुर के इतिहास के इस कालखंड पर शोध करने के लिए किसी भी पाठक को श्री शौकत अली खां की इस पुस्तक को पढ़ना अनिवार्य है । सैकड़ों की संख्या में उद्धरण इस पुस्तक को मूल्यवान बनाते हैं । जब मैंने इस पुस्तक के बारे में सुना तब रामपुर रजा लाइब्रेरी से इस किताब को खरीदा ,पढ़ा और उसकी प्रशंसा की। आपकी पुस्तक से मेरी आत्मीयता इसलिए भी तुरंत स्थापित हो गई क्योंकि उसमें अनेक अध्यायों में मेरी 1986 में प्रकाशित पुस्तक रामपुर के रत्न के उद्धरण एक दर्जन से अधिक स्थानों पर दिए गए थे । इस तरह श्री शौकत अली खाँ से मेरा संपर्क और भी बढ़ने लगा । कई बार वह मेरी दुकान पर आ जाते थे और थोड़ी देर बातें करते थे । मित्रता तो मैं नहीं कह सकता क्यों कि मैं उनसे चौदह साल छोटा था । लेकिन हाँ ! 11 जून 1946 को जन्मे वह एक छोटे भाई की तरह मुझसे स्नेह करते थे । मैं उनसे कहता था कि जो रामपुर का इतिहास आपने लिखा है वह कई पीएच.डी. की शोध प्रबंध के बराबर है और वह न केवल मुस्कुराते थे बल्कि मेरी बात का समर्थन करते थे । वास्तव में जितना परिश्रम उन्होंने पुस्तक के लेखन के लिए किया होगा ,उसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है।
●●●●●
अधूरी रह गई आत्मकथा
●●●●●
इधर आकर वह अपनी आत्मकथा अथवा संस्मरण लिख रहे थे । हमने उन्हें अनेक बार राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय( टैगोर शिशु निकेतन ) के कार्यक्रमों में मंच पर आसीन करके समारोह का गौरव बढ़ाया था । उन्होंने एक दिन दुकान पर आकर मुझसे कहा कि अगर कुछ फोटो आपके पास हों तो मुझे दे दीजिए, किताब छपवा रहा हँ। उसमें काम आएंगे। मैंने तुरंत बैठे-बैठे उनका मोबाइल नंबर अपनी कांटेक्ट लिस्ट में लिया तथा व्हाट्सएप पर जो आठ-दस फोटो मेरे पास थे ,तुरंत भेज दिए । वह फोटो देख कर बहुत खुश हुए । इनमें से एक फोटो श्री महेश राही को रामपुर का इतिहास पुस्तक भेंट करते हुए था । एक फोटो श्री महेश राही को रामप्रकाश सर्राफ लोक शिक्षा पुरस्कार प्रदान करते समय का था । एक फोटो विचार गोष्ठी का था । एक फोटो जाति मुक्ति भाषण प्रतियोगिता का था । इन सब में उनकी गरिमामय उपस्थिति अपनी ओजस्विता की कहानी स्वयं कह रही थी ।श्री शौकत अली खाँ का जीवन ऊँचे दर्जे की सामाजिकता तथा क्रांतिकारी चेतना से ओतप्रोत था।
ज्ञान मंदिर पुस्तकालय में एक समारोह में उन्होंने भाषण देते हुए बताया था कि हिंदी के लिए आंदोलन करते हुए जेल जाने वाला मैं रामपुर का पहला व्यक्ति हूँ। जिस गर्व से उन्होंने यह बात कही थी उससे हिंदी के प्रति उनकी आत्मीयता प्रकट हो रही थी। उर्दू के प्रचार ,प्रसार और उन्नयन के लिए भी वह सचेष्ट रहे।
इधर आकर मेरा उनका संपर्क व्हाट्सएप के माध्यम से भी खूब चला । वह अपनी पसंद का किसी उर्दू शायर का लिखा हुआ शेर मुझे भेजते थे और मैं यदा-कदा अपनी कोई कुंडलिया उन्हें व्हाट्सएप पर प्रेषित कर देता था । उनका न रहना न केवल रामपुर के साहित्यक और वैचारिक जगत की एक भारी क्षति है बल्कि मेरे लिए एक व्यक्तिगत नुकसान भी है । वह शरीर से तो नहीं रहे लेकिन रामपुर का इतिहास पुस्तक के रूप में सदियों तक जीवित रहेंगे ।
■●●
व्हाट्सएप पर संवाद
●●●●●●
व्हाट्सएप पर अनेक बार आपने मुझे अपनी पसंद के सुंदर शेर पढ़ने के लिए भेजे। मैंने उन्हें पढ़ा और आपकी चयन-दृष्टि की प्रशंसा की।
————————
22 मई 2021 को आपके द्वारा प्रेषित एक शेर:-
स्याह रात नाम नही लेती ढलने का———
यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का ।
(शहर यार)
———————–
24 मई 2021 को आपके द्वारा प्रेषित एक शेर:-
उस ने दीवार पर मिट्टी का दिया क्या रखा ——
रौशनी मुझ को बुलाने मेरे घर तक आई ।
(सईद केस)
———————–
29 मई 2021 को आपके द्वारा प्रेषित एक शेर:-
भीढ ने यूं ही रहबर लिया मान है वर्ना
अपने अलावा किस को घर पहुंचाया हमने ।
(शारिक़ आज़मी)
मैंने शेर की प्रशंसा की किंतु “भीढ” शब्द को संशोधित करके “भीड़” लिखा । आपने जवाब में “ओके सर” लिखकर मेरा संशोधन स्वीकार किया तथा संशोधित शेर प्रेषित कर दिया । मैंने कहा आप मुझे सर न कहें। मैं आयु और योग्यता दोनों में आपसे बहुत छोटा हूँ।
———————
2 जुलाई 2021 को आपके द्वारा प्रेषित एक शेर। उन्हें मालूम था कि मुझे कुछ शब्दों के अर्थ समझने में कठिनाई आ सकती है अतः उन्होंने उसका अर्थ साथ में लिख दिया था।
इश्क़ वह इल्म ए रियाज़ी* है जिस में फ़ारिस—–
दो से जब एक निकालें तो सिफ़र बचता है ।
(रहमान फ़ारिस)
*गणित
———————–
3 जुलाई 2021 को प्रेषित आपका एक शेर:-
सांप आते हैं मुझे डस के चले जाते हैं
मेरे अन्दर है कहीं दफ़्न ख़ज़ाना मेरा !
(अब्बास ताबिश)
———————–
17 जुलाई 2021 को आपका प्रेषित एक शेर
जाने कितनी उम्र कटेगी इस नादानी मे ।अपने अक्स को ढूंढ रहा हूं खौलते पानी मे ।
(क़तील शिफ़ाई)
———————-
24 मई 2021 को मैंने आपको एक कुंडलिया लिखकर भेजी, जिस पर आपने अगले दिन अति सुंदर टिप्पणी अंकित करके मुझे सौभाग्यशाली बना दिया। कुंडलिया इस प्रकार है:-
————–
समय का चक्र (कुंडलिया)
————-
चलता रहता चक्र है ,शीत ऊष्म बरसात
कभी धूप सूरज दिखा ,कभी चाँदनी रात
कभी चाँदनी रात ,नित्य हैं सुख-दुख आते
होते कभी अमीर , कभी निर्धन हो जाते
कहते रवि कविराय ,कभी सुखदाई-खलता
सहो समय का चक्र ,निरंतर जग में चलता
“””””””””””””””‘””’
ऊष्म = गर्मी ,ग्रीष्म ऋतु
“”””””””””””””””””””””””””””””””
श्री आंजनेय कुमार से भेंट वार्ता
●●●●●●●●●●●●
5 मार्च 2021 को आपने एक व्यक्तिगत गतिविधि से संबंधित सुंदर टिप्पणी मुझे प्रेषित की । यह आपकी रामपुर के अत्यंत ऊर्जावान जिलाधिकारी श्री आंजनेय कुमार के आयुक्त मुरादाबाद होकर स्थानांतरित होने के संबंध में थी। आपने अपनी मुलाकात को जिन प्रभावशाली शब्दों और शैली के साथ अभिव्यक्त किया उससे आपकी उच्च कोटि की लेखकीय क्षमता उजागर होती है । मेरे ख्याल से यह भेंटवार्ता आपके संस्मरण अथवा आत्मकथा का एक अंश रही होगी ।
*** :- “आज रामपुर के स्थानांतरित डी. एम. माननीय आन्जनेय कुमार जी से विदाई भेंट हुई ।एकदम हृदयस्पर्शी, खुले मन से,खुली आँखों से,संघर्षों और सपनो व मानवीय संवेदनाओं के बारे में, रामपुर के सेवाकाल, रामपुर के विकास ,रज़ा लाइब्रेरी तथा भविष्य में रामपुर से संबंधों के बारे में ।उन्हें अफ़सोस रहा कि वह रामपुर के कला-कौशल को जितना विकसित करना और उसे उन्रति पर ले जाना चाह्ते थे उसका मात्र दस %ही हो सका,करोना काल ने गति रोक दी ।रामपुर का शानदार आर्थिक व घरेलू लघु विकास उनका सपना था ।भविष्य में भी वह इस के प्रति जागरूक रहेंगे।उन्होंने कहा कि मै रज़ा लाइब्रेरी का डायरेक्टर हूँ।अतीत के गौरव को बनाए रखना मेरी प्राथमिकता रहेगी । तबादले से मेरा रामपुरी सम्बन्ध समाप्त नही होगा ।उनकी जनता और दायित्व के प्रति मज़बूत इच्छाशक्ति और संकल्प व साफ़गोई उनके चेहरे से स्पष्ट थी ।जैसे कह रहे हों जो मेरे शब्द हैं वही मेरा अर्थ है ।चालीस मिनट की योग-शृँखला अदभुत रही।”
——————-**
श्री शौकत अली खाँ संपूर्ण ओजस्विता के साथ सक्रिय थे । अभी लंबे समय तक साहित्य और समाज को उनसे योगदान की अपेक्षा थी। हाल ही में 24 अक्टूबर 2021 को वह रियासतकालीन सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे । उनकी कर्मठता और साहित्यिक योग्यता के कारण सबका विश्वास था कि वह कुछ ऐसा कर सकेंगे जो अभी तक नहीं हो पाया है । वह अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी खेलने के लिए मैदान में खड़े थे । वह कर्म में विश्वास करते थे और कर्मरत रहते हुए ही इस दुनिया से चले गए। एक दोहे से उनको विनम्र प्रणाम …
स्याही धोखा दे गई ,कलम हुई मजबूर
पथ के राही ने कहा ,मंजिल अब भी दूर
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
पुस्तक समीक्षा
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रामपुर रियासत का अंतिम दौर
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
पुस्तक का नाम : रामपुर का इतिहास (1930 ईस्वी से 1949 ईस्वी तक)
लेखक : शौकत अली खाँ एडवोकेट
प्रकाशक : रामपुर रजा लाइब्रेरी ,हामिद मंजिल ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
प्रकाशन का वर्ष : सन 2009 ईस्वी
मूल्य : ₹700
कुल पृष्ठ संख्या : 596
★★★★★★★★★★★★★★★★
समीक्षक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
★★★★★★★★★★★★★★★★
इतिहास लेखन का कार्य सरल नहीं होता। इसके लिए गहन अध्ययन ,कठोर परिश्रम, व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण तथा निष्पक्ष चेतना की आवश्यकता होती है । एक भी कार्य में कमी रह जाने पर इतिहास-लेखन बिखर जाता है और अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाता । केवल वह ही इतिहास-लेखक सफल हो पाते हैं जो न तो किसी को खुश करने के लिए लिखते हैं और न किसी से भयभीत होते हैं । श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट ने कुछ इसी उन्मुक्त अंदाज में अद्भुत रीति से “रामपुर का इतिहास” पुस्तक लिखी है । निष्पक्षता की कसौटी पर इसका कोई जवाब नहीं है ।
पुस्तक नवाब रजा अली खाँ के 20 जून 1930 को रामपुर की रियासत का शासन-भार सँभालने से लेकर 30 जून 1949 तक जबकि रामपुर रियासत का पूर्ण रूप से विलीनीकरण भारतीय संघ में हो गया ,उस कालखंड का इतिहास संजोए हुए हैं । यह कालखंड न केवल रामपुर रियासत की दृष्टि से बल्कि संपूर्ण भारत में गहरे उथल-पुथल का दौर रहा था। रियासतें अस्ताचल की ओर जा रही थीं तथा अंततोगत्वा उन्हें अपने अस्तित्व को खोना पड़ा । इस दौर में रियासतों में भारी असंतोष शासन के प्रति देखने में आया। लेखक ने उन सब का भली-भांति विवरण अपनी पुस्तक में प्रस्तुत किया है । इस तरह से यह रामपुर रियासत में जन असंतोष तथा जनता की प्रजातांत्रिक भावनाओं की अभिव्यक्ति का भी इतिहास बन गया है ।
रामपुर रजा लाइब्रेरी के तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी वकार उल हसन सिद्दीकी की प्रस्तावना दिनांक 24 जून 2002 तथा परिशिष्ट पढ़कर यह पता चलता है कि यह पुस्तक प्रारंभ में “तारीख-ए- रामपुर” के नाम से उर्दू में प्रकाशित हुई तथा बाद में इसका हिंदी संस्करण सामने आया। श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट हिंदी और उर्दू दोनों पर समान अधिकार रखते हैं। इसलिए हिंदी संस्करण कहीं भी अनुवाद के भार से बोझिल नहीं हुआ है । भाषा की दृष्टि से हिंदी का प्रवाह मुहावरेदार है और पाठकों को अपने आकर्षण से बाँधकर चलता है।
पुस्तक चालीस अध्यायों में विभाजित है । प्रारंभिक प्रष्ठों में रुहेलखंड और रियासत रामपुर का संक्षिप्त इतिहास है । 26 अगस्त 1930 को नवाब रजा अली खाँ की ताजपोशी का आँखों देखा वर्णन अध्याय चार में है, जिसके लिए लेखक ने “रिमेंबरेंस ऑफ डेज पास्ट” पुस्तक में श्रीमती जहाँ आरा हबीबुल्लाह (राजमाता रफत जमानी बेगम की छोटी बहन) के लिखित संदर्भ को गरिमामय रीति से उद्धृत करके इतिहास का अभूतपूर्व दृश्य पाठकों के सामने उपस्थित कर दिया है। राजसी वैभव का ऐसा आँखों देखा हाल शायद ही कहीं वर्णित हो। नवाबी दौर का स्मरण अपने आप में बहुत दिलचस्प चीज है ।
अध्याय छह में “नवाब रजा अली खां के शासनकाल का आरंभ” शीर्षक से रियासत में लगने वाले दरबार में पधारने वाले दरबारियों के वस्त्रों के बारे में बताया गया है। जून 1931 के इस फरमान के अनुसार “सफेद चूड़ीदार पाजामा और स्टीपनेट लेदर पंप या जूते सभी दरबारी पहनेंगे … गर्मी के मौसम में सफेद रेशम की अचकन और सर्दी के मौसम में स्याह सर्ज की अचकन होना चाहिए …दरबार के समस्त शुरका ,आगंतुक साफा पहनें और पेटी लगाएँ।(पृष्ठ 90 – 91)
अध्याय 10 , 11 और 12 महत्वपूर्ण हैं। इनमें अंजुमन मुहाजिरीन का आंदोलन, रामपुर का प्रथम राजनीतिक दल अंजुमन खुद्दाम ए वतन तथा भूखा पार्टी और कोतवाली कांड नाम से जनता के असंतोष को विस्तार से वर्णन किया गया है । जन- आक्रोश तथा रियासती सरकार द्वारा उस पर प्रतिक्रिया को लेखक ने इस शब्दों में लिखा है : “अंततः हालात के और विषम हो जाने पर राजा और प्रजा उत्पीड़क और उत्पीड़ित का प्रतीक बन गए ।”(प्रष्ठ 156)
मुहाजिरीन से तात्पर्य उन लोगों से था जो रामपुर में रहकर आंदोलन नहीं कर पा रहे थे । लेखक के शब्दों में “रामपुर से हिजरत (पलायन )करने वाले बरेली में एकत्र हुए और बरेली के मौलवी अजीज अहमद खाँ एडवोकेट की संरक्षकता में अगस्त 1933 में एक संगठन अंजुमन मुहाजिरीन रामपुर(रिफ्यूजीस एसोसिएशन रामपुर) बनाई ।”(पृष्ठ 159)
रामपुर का प्रथम राजनीतिक दल “अंजुमन खुद्दामे वतन” की स्थापना पर पर्याप्त प्रकाश अध्याय ग्यारह के माध्यम से डाला गया है । लेखक ने लिखा है कि 27 सितंबर 1933 को रामपुर में “अंजुमन खुद्दामे वतन” की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष मौलाना अब्दुल वहाब खाँ बनाए गए। बेरोजगारी तथा लोकतंत्र की स्थापना के मुद्दों पर संगठन के क्रियाकलापों का वर्णन पुस्तक में विस्तार से मिलता है।
रियासत रामपुर में सुधारात्मक उपाय, कुरीति उन्मूलन ,उत्तरदायी वैधानिक शासन का आंदोलन ,नेशनल लीग आंदोलन ,अली बंधु ,द्वितीय विश्व युद्ध ,नई विधानसभा आदि विभिन्न अध्यायों के माध्यम से रियासत में जनता और राजशाही के बीच लुकाछिपी के खेल को लेखक ने अपनी रोचक भाषा-शैली में ऐतिहासिक दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत किया है । प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर यह इतिहास-लेखन का कार्य बड़े आराम से आगे बढ़ा है ।
“किसान आंदोलन 1946” पर अध्याय 28 आधारित है तथा अध्याय 29 में नेशनल कांफ्रेंस की स्थापना का वर्णन हो रहा है। रामपुर रियासत में कांग्रेश सीधे तौर पर कार्य नहीं कर रही थी । लेखक के शब्दों में: “अन्य रियासतों की तरह रामपुर स्टेट में भी कांग्रेस की कोई शाखा नहीं थी लेकिन सैद्धांतिक दृष्टि से नेशनल कान्फ्रेंस रामपुर में कांग्रेस का विकल्प थी।”(प्रष्ठ 340)
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अथवा यूं कहें कि बँटवारे के समय रामपुर में जो आगजनी तथा मार्शल-लॉ लगने की भयावह घटनाएं हुई थीं ,उन पर लेखक ने अध्याय 30 ,31 तथा 32 के माध्यम से प्रकाश डाला है।1947 में रामपुर में मुस्लिम कान्फ्रेंस के संगठन को लेखक ने “लीगी विचारधारा” का नाम दिया।( पृष्ठ 346) उसने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस को नापसंद किया है।
1947 में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस पर लेखक की तथ्यात्मक टिप्पणी इतिहास का एक परिदृश्य हमारे सामने सटीक रूप से रख सकती है। लेखक के शब्दों में : “मुस्लिम संप्रदाय में मुस्लिम कान्फ्रेंस की लोकप्रियता बढ़ने लगी। मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ने कई हजार हस्ताक्षरों से नवाब रामपुर को एक ज्ञापन दिया और माँग की कि रियासत रामपुर को पाकिस्तान में शामिल किया जाए । ” (पृष्ठ 347)
रामपुर में पुरानी तहसील का दफ्तर जलने की घटना 4 अगस्त 1947 को हुई थी। उत्पात 4 अगस्त 1947 ईस्वी शीर्षक से लेखक ने अध्याय 31 का आरंभ इन शब्दों से किया है : “मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ने 2 अगस्त 1947 ईस्वी को जामा मस्जिद रामपुर में 3 बजे दिन सार्वजनिक सभा कराने की घोषणा की।”( पृष्ठ 358)
लेखक ने अपनी पुस्तक में “मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” को “आपराधिक तत्व और संदिग्ध चरित्र के लोग” बताया है ।(पृष्ठ 346) उससे तथा उसकी विचारधारा से लेखक को गहरा विरोध है ।
लेखक ने 4 अगस्त 1947 के उपद्रव के कारणों का गहराई से अध्ययन किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि ” शासक तंत्र की संरक्षकता और राजघराने का आंतरिक षड्यंत्र ही 4 अगस्त 1947 के उत्पात के प्रेरक थे। रामपुरी जनता का यह आक्रोश रियासत के शासक और शासन तंत्र के विरुद्ध था । पाकिस्तान के पक्ष या समर्थन में नहीं था ।” (पृष्ठ 388)
अपने तर्क के समर्थन में लेखक ने तत्कालीन रियासती सीनियर पुलिस सुपरिंटेंडेंट श्री अब्दुल रहमान खाँ के विचार तथा युवराज मुर्तजा अली खाँ के पत्र को उद्धृत किया है। इससे लेखक के निष्कर्षों की प्रमाणिकता बहुत बढ़ गई है । (पृष्ठ 380)
पुस्तक में नवाब रजा अली खाँ के शासनकाल में रामपुर में औद्योगिक विकास तथा शिक्षा संस्थाओं की स्थापना के साथ- साथ धार्मिक सद्भावना को बढ़ाने वाले क्रियाकलापों पर अनेक अध्यायों के माध्यम से प्रकाश डाला गया है ।
रामपुर में “गाँधी समाधि” की स्थापना पर एक पूरा अध्याय है।
” स्टेट असेंबली 1948 और उत्तरदाई वैधानिक शासन” शीर्षक से अध्याय 34 लिखित है । इसमें स्वाधीनता के उपरांत रामपुर में विधानसभा के गठन के प्रयासों का विस्तार से वर्णन है तथा अगस्त 1948 में नवगठित विधानसभा में रामपुर रियासत के स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखने का प्रस्ताव पारित किए जाने का वर्णन किया गया है । लेखक ने अपनी निष्पक्षता की नीति के अंतर्गत जहाँ एक ओर यह लिखा है कि : ” किसी ने प्रस्ताव का विरोध नहीं किया और प्रस्ताव सर्वसम्मति से मंजूर करार दे दिया गया । ” वहीं दूसरी ओर “रामपुर के रत्न” पुस्तक के प्रष्ठ तिरेपन के हवाले से राम भरोसे लाल को उपरोक्त प्रस्ताव का विरोध करने का दावा प्रस्तुत करने वाला बताया है।( प्रष्ठ 408) यह सब प्रवृतियाँ घटनाक्रम को व्यापक दृष्टिकोण से तथा विविध आयामों को साथ लेकर चलने की लेखक की खुली और संतुलित चेतना की परिचायक हैं।
रियासत रामपुर का विलय पुस्तक का संभवतः सर्वाधिक आकर्षक अध्याय कहा जा सकता है ।लेखक को इसे लिखते समय न कोई लोभ था और न भय। उसने लिखा है कि जहाँ बहुत से लोग “रामपुर की विशेष हैसियत बरकरार रखने पर जोर” देते थे( पृष्ठ 412) वहीं यह विलय “रियासत के शासक के लिए अप्रत्याशित हितकारी सिद्ध हुआ । विलय के समय रियासत का खजाना बिल्कुल खाली था । किले और उसके इमामबाड़े के तमाम जवाहरात , कीमती और दुर्लभ चीजें और अद्भुत व अप्राप्य सामान हटा लिया गया था ।” (पृष्ठ 432 – 433)
पुस्तक के अंत में पचास से अधिक व्यक्तियों के जीवन-वृत्तांत (किसी पर छोटे और किसी के विस्तार लिए हुए )प्रस्तुत करके लेखक ने पुस्तक को कई गुना मूल्यवान बना दिया है । इन सब में लेखक के परिश्रम की प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता । उसने जिस बुद्धि-चातुर्य के साथ व्यक्तित्वों के सजीव चित्र प्रस्तुत किए हैं ,वह अपने आप में मौलिकता लिए हुए हैं।लेखक ने एक सौ के लगभग समाचार पत्र – पत्रिकाओं ,पुस्तकों तथा दस्तावेजों को संदर्भ के रूप में प्रयोग किए जाने की सूची दी है। प्रत्येक अध्याय में दर्जनों बार अनेक संदर्भ ग्रंथों के उद्धरणों से पुस्तक अपनी प्रामाणिकता की स्वर्णिम आभा असंदिग्ध रूप से प्रत्येक पृष्ठ पर बिखेर रही है । संक्षेप में “रामपुर का इतिहास” शौकत अली खाँ एडवोकेट द्वारा लिखित केवल एक शोध-प्रबंध कहना सही नहीं होगा । यह वास्तव में कई शोध-प्रबंध तैयार करने की मेहनत के बराबर है । पुस्तक अद्भुत रूप से प्रशंसा के योग्य है।
■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

442 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
कविता
कविता
Shweta Soni
चीत्कार रही मानवता,मानव हत्याएं हैं जारी
चीत्कार रही मानवता,मानव हत्याएं हैं जारी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
हम सब भी फूलों की तरह कितने बे - बस होते हैं ,
हम सब भी फूलों की तरह कितने बे - बस होते हैं ,
Neelofar Khan
मुझे मुझसे हीं अब मांगती है, गुजरे लम्हों की रुसवाईयाँ।
मुझे मुझसे हीं अब मांगती है, गुजरे लम्हों की रुसवाईयाँ।
Manisha Manjari
कौन है सच्चा और कौन है झूठा,
कौन है सच्चा और कौन है झूठा,
ओनिका सेतिया 'अनु '
ਉਸਦੀ ਮਿਹਨਤ
ਉਸਦੀ ਮਿਹਨਤ
विनोद सिल्ला
खुद गुम हो गया हूँ मैं तुम्हे ढूँढते-ढूँढते
खुद गुम हो गया हूँ मैं तुम्हे ढूँढते-ढूँढते
VINOD CHAUHAN
Be with someone who motivates you to do better in life becau
Be with someone who motivates you to do better in life becau
पूर्वार्थ
रज के हमको रुलाया
रज के हमको रुलाया
Neelam Sharma
Opportunity definitely knocks but do not know at what point
Opportunity definitely knocks but do not know at what point
Piyush Goel
ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कभी बारिशों में
कभी बारिशों में
Dr fauzia Naseem shad
गम भुलाने के और भी तरीके रखे हैं मैंने जहन में,
गम भुलाने के और भी तरीके रखे हैं मैंने जहन में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
प्रभु भक्ति में सदा डूबे रहिए
प्रभु भक्ति में सदा डूबे रहिए
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
4568.*पूर्णिका*
4568.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
इज़ाजत लेकर जो दिल में आए
इज़ाजत लेकर जो दिल में आए
शेखर सिंह
*Love filters down the soul*
*Love filters down the soul*
Poonam Matia
बस एक प्रहार कटु वचन का - मन बर्फ हो जाए
बस एक प्रहार कटु वचन का - मन बर्फ हो जाए
Atul "Krishn"
उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो, बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।
उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो, बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।
Anand Kumar
संत रविदास!
संत रविदास!
Bodhisatva kastooriya
😘मानस-मंथन😘
😘मानस-मंथन😘
*प्रणय*
** पर्व दिवाली **
** पर्व दिवाली **
surenderpal vaidya
अक्सर चाहतें दूर हो जाती है,
अक्सर चाहतें दूर हो जाती है,
ओसमणी साहू 'ओश'
क्या लिखूँ
क्या लिखूँ
Dr. Rajeev Jain
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
The_dk_poetry
"फर्क"
Dr. Kishan tandon kranti
संवेदनाओं का भव्य संसार
संवेदनाओं का भव्य संसार
Ritu Asooja
"प्यार के दीप" गजल-संग्रह और उसके रचयिता ओंकार सिंह ओंकार
Ravi Prakash
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Seema Garg
मेरी सच्चाई को बकवास समझती है
मेरी सच्चाई को बकवास समझती है
Keshav kishor Kumar
Loading...