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11 Mar 2022 · 1 min read

बहुत दिनों के बाद भी

दोहा गजल

बहुत दिनों के बाद भी ,भूल न पाये प्यार ।
नित्य महकता ही रहा ,तन-मन में घनसार ।।

धुनि अपनी हिय में रमा ,करता बहुत प्रवीण ।
रहा मनाता ही सदा ,अंतर में त्योहार ।।

भावो का अंजन लगा ,करता दृग संधान ।
प्रीति रंग गाढ़ी रँगी ,उतरी नहीं खुमार ।।

भाग रहा नित दूर था ,दिया घेरके डाल ।
अंतर्मन में यह प्रीति बन ,बैठी सूबेदार ।।

यादों को हिय में छुपा ,गुँथता रहता साथ ।
पावन प्रियता नित्य ही ,करती मन संस्कार ।।

ढो अनुपम इस रीति को ,पायी मन की प्रीति ।
लगा विचारों का सदा ,अंतर में दरबार ।।

मान हृदय अपना उसे ,किया प्रेम संभ्रांत ।
निश्चय ही पाता रहा ,अपना मैं विस्तार ।।

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित सृजन
वाराणसी
8/12/2021

Language: Hindi
298 Views
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