— बहुत कुछ सीखा है —
जब से बड़े हुए हम
न जाने कहाँ कहाँ से
गुजर गए हम
कभी तकदीर ने सताया
कभी जमाने ने रुलाया
कभी गिर गए जमीन पर
मंजिल को हांसिल करने में
कभी उठ कर चलने में
जिन पर करते थे भरोसा
उनके झूठे वादों से डगमगाकर
मेहनत से पीछे न हटे
पर मजिल पा न सके
कभी किसी ऐतबार से तो
कभी किसी के झांसे ने सताया
बहुत कुछ सीखा हमने
फिर भी यारों हौंसला नहीं गवाया
कौन सीख के आता है गर्भ से
सब कुछ् तो यही अपनाया
हिम्मत देती न थी साथ कभी कभी
पर फिर भी दिल नहीं घबराया
चलना आगे बढ़ना
बस चलते ही चले जाना
रूक कर भी लगा
मानो पीछे से भगा रहा है जमाना
शायद वक्त ही था
जिस ने हारने से पहले हम को जीताया
अजीत कुमार तलवार
मेरठ