बहुत कुछ बदल गया है
आज कुछ ऐसा महसूस हो रहा है,
समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है।
न है अपेक्षा न ही उपेक्षा का रहा भाव,
केवल ख़ुद में ख़ुद संग जीने की है चाह।
नहीं कोई शोध या प्रतिशोध की कामना,
केवल भावनाओं को कलमबद्ध करने की है चाह।
न सहभागिता न प्रतियोगिता की रही होड़,
केवल सच्चे जीवनसाथी से आत्मीयता की है चाह।
न मिलने का उत्साह न बिछड़ने की परवाह,
केवल अथाह प्रेम बाँटने और पाने की प्रबल है चाह।
न होती आकस्मिक प्रतिकूलता की घबराहट,
केवल परिस्थितियों के अनुरूप ख़ुद को ढालने की है चाह।
बढ़ चले हैं क़दम स्वयमेव आध्यात्मिक राह पर,
केवल चिरस्थाई शांति की डगर पर चलने की है चाह।
नहीं प्रत्याशा अब ऊंचाईयों को छूने की मन में,
केवल धरती पर सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने की है चाह।
डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’