*बहुत कठिन डगर जीवन की*
बहुत कठिन डगर जीवन की
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बहुत कठिन ड़गर जीवन की।
सदा सुनती मगर जीवन की।
जली है आग तन – मन हर दिन,
बुझे लपटें अगर जीवन की।
न ही कोई मिला संगी साथी,
कहीं खोई खबर जीवन की।
गिरे बिजली बदन जल उठता,
नहीं मिलती कदर जीवन की।
गुजर कैसेब् करूँ मनसीरत,
बड़ी मुश्किल बसर जीवन की।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)