बहुत अरमान लिए अब तलक मैं बस यूँ ही जिया
बहुत अरमान लिए अब तलक मैं बस यूँ ही जिया
मैं टूट जाऊँ बिखर जाऊँ मुकद्दर ने दगा मुझसे किया
मैं लगा रहा सबको खुश रखने की कोशिशों में मगर
खुदा की चाहत थी जो मुझको ही ना हँसने दिया
बहुत अरमान लिए अब तलक मैं बस यूँ ही जिया
मैं टूट जाऊँ बिखर जाऊँ मुकद्दर ने दगा मुझसे किया
मैं लगा रहा सबको खुश रखने की कोशिशों में मगर
खुदा की चाहत थी जो मुझको ही ना हँसने दिया