बहार का इंतजार
मेरे दर्द से मुतासिर नहीं हो खुदा तुम ,
वरना भेज ना देते बहारों को तुम ।
नजरें दीदार ए बहार को तरस गई ,
और कितना इंतजार करवाओगे तुम।
अब तक तो खार ही आएं है हिस्से में ,
फूलों से हमारा रिश्ता कब जोड़ोगे तुम ।
ख्वाबों से दिल को तसल्ली नहीं होती ,
हमारे जज्बातों को कुछ तो समझो तुम ।
बहारें आएं तो हम भी खुशी से झूम लें ।
बस थोड़ी सी तो बहार भेज दो तुम ।
क्या सारी उम्र गुजर जायेगी इंतजार में ,
आखिर कब तक यूं ही तरसाओगे तुम ?
हर इंसा की तकदीर में आती तो है बहार ,
मेरी ऐसी तकदीर कब लिखोगे तुम ?
ए खुदा ! तुम मेरे दर्द से मुतासीर कब होेगे ?
हम सदायें दे रहें मगर कैसे खामोश हो तुम ।
यह खामोशी तुम्हारी ले लेगी हमारी जान देखो !
फिर ना कहना “थोड़ा और इंतजार कर लेते तुम ”
” अनु ” को मगर फिर भी एतबार है तुम पर ,
देखते है कब तक यूं संगदिल बने रहते हो तुम ।