बहारों का जमाना
फिर लौट के आएगा , जमाना बहारों का ?
रूठा हुआ है आजकल, मैखाना यारों का ।।
थकते न थे जो , साथ चलते हुए ।
चुपचाप बैठें हैं , हाथ मलते हुए ।।
खामोश लब हैं , उदास हैं निगाहें ।
साथ चलने वालों की , जुदा हो गई राहें।।
न डोला रहा , न जमाना कहारों का ।
कैसे लौट के आएगा , जमाना बहारों का ।।
अरे चुप ये दिल , क्यों तू मचलता है ।
क्यों नहीं , जमाने के संग चलता है ?
मत उगल बेवक्त बातें , क्यों हाथ मलता है ?
क्यों नहीं, जमाने जैसा रंग बदलता है ?
झूठी बात पर , क्यों जलता है ?
क्यों नहीं कहता , सब चलता है ?
बदलते रंग , बदला अंदाज यारों का ।
अब यहां , क्या काम दिलदारों का ?
मुमकिन है बदल जाना, जमाना बहारों का । रुतबा बदला जब , बचपन के यारों का ।।
ढलना उधर , जिधर जमाना ढलता है ।
कह जमाने से , साहेब सब चलता है !।
ला मिठास , चापलूसी की जुबां पर ।
क्यों बेकार , हाथ मलता है ?
बन जा आंख का तारा , हर किसी का ।
क्यों सूरज जैसा ढलता है ?
सजा महफिल , लौटेगा जमाना बहारों का ।
आबाद होगा “सोबन” रूठा मैखाना यारों का ।।