बहारें
विषय – बहारें !
विधा – कुकुभ छंद !
विधान – ३० मात्रा, १६, १४ पर यति l
कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l अंत मे २,२!
कोमल किसलय डोल रहा है, नन्ही कलिका छिपती- सी !
रूप उषा छितरा अंबर में, कंचन आभा खिलती – सी!
प्रकृति प्रेम में तन मन उलझा, ईश्वर अनंत में छाया!
बदरी श्यामल नैन निहारें, मंजुल स्वप्न भरी माया !!१
शीतल मादक किरणें देतीं , मृदुल मोह की परछाई !
सुरभित भावों की दुनिया में, लेता जीवन अँगडाई!
माधव के रस कौतूहल में, उठती अब गूँज बहारें !
नीरव निशीथ से जाग उठा,रवि मर्मर रश्मि सहारे !!२
कोमल बाँहों के अंचल में, धरा संकुचित लिपटी- सी !
इंद्रजाल बन फूलों छाई, बूँद नवल अब चिपटी- सी !
राग अनोखा चित में छाया, चंचल चितवन मधुशाला !
झूक रही मन की अभिलाषा, कोमल कदंब की माला!!३
छगन लाल गर्ग विज्ञ!