बहन मिल गई
रक्षाबंधन विशेष
बहन मिल गई
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एक विश्वसनीय प्रतीक्षा भरी उत्सुकता
जब धरातल पर समाप्त हुई
तो मन मयूर नाच उठा,
खुशियों का जैसे सैलाब आ गया
आंखें नम हो गईं, मन भावुक हो गया।
ये कैसा बंधन है जहां शब्द मौन हो जाते हैं
मन के तार संदेश पहुंचाते हैं।
अबूझ पहेली सा है ये संबंध
जहां न कोई खून का रिश्ता
न जान पहचान का कोई सूत्र
फिर भी अटूट बन संवर रहा हमारा ये रिश्ता।
जहां नेह है, स्नेह है, शिकवा और शिकायतों संग
विश्वास का भंडार भरा अधिकार भी।
न कोई संकोच है न कोई भेद ही
न ही अपने पराए का गुणा गणित भी।
बस! है तो मात्र एक स्नेह बंधन
जिसमें रचा बसा है उसका स्नेह प्यार दुलार
और अपनेपन के विश्वास संग अधिकार
जिसे बांधा है उसने राखी के धागों से
और संवारा है अपने लाड़ प्यार से।
इस बंधन में बंधना भी सौभाग्य जैसा है
जिसमें पवित्र भाव और आत्मविश्वास के
सिवा कुछ भी तो नहीं है।
और अगर है तो पूर्व जन्म के रिश्तों की वोडोर
जो शायद छूट गई थी कभी
हम दोनों से या किसी एक से
और वो डोर जैसे आज फिर हमारे हाथ आ गई,
रक्षा- बंधन का सूत्र बनकर
और एक बार फिर हमें रिश्तों के बंधन में बांध गई,
राखी के धागों में जकड़ गई
हमारे रिश्तों को फिर से पहचान दे गई।
बहन को एक बड़ा भाई और
भाई को फिर एक बहन मिल गई।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित