बहन भी अधिकारिणी।
बहन भी अधिकारिणी।
बहन तो बहन होती है बस…
कितना भी भला करे
भाई के लिए,
पर कभी वो भाई नहीं होती।
उसके सिर्फ़ फर्ज,
पर उसकी कोई कमाई नहीं होती।
भाई-भाई में होती लड़ाई ,
पर बहन कभी रुसवाई नहीं होती।
बहन तो बहन होती है बस…
छोटे भाई को गोद में खिलाती है।
प्यार से खाना पकाती है।
भाई बस सुख में रहते साथ सदा,
पर बहन दुःख में पहले आती है।
बहन तो बहन होती है बस…
माँ-बाप का घर नहीं उसका।
घर के काम उसके,
पर घर नहीं उसका।
अपने घर में पराई,
हर दुःख-दर्द पर नाम उसका।
बहन तो बहन होती है बस…
भाई के ही रिश्तेदार और समाज होता है।
हर धन-संपदा पर उसका राज होता है।
उसका ही हर कल और आज होता है।
बहन तो बहन होती है बस…
उसकी दुःखी हालत,
बीमारी भाई जानता नहीं।
उसका कोई धन में हिस्सा,
हक मानता नहीं।
रक्षा-बंधन भी एक बोझ लगे उसे,
इस त्योहार का जीवन- अर्थ जानता नहीं।
बहन तो बहन होती है बस…
भाई को मातृ-सम स्नेह करती है।
भाई के लिए मंगल कामना करती है।
फिर भी हर रीत उसे ही,
हर अधिकार से दूर करती है।
बहन तो बहन ही होती है
शायद…
समाज में उसकी एक भाई सी,
पहचान नहीं होती।
शायद…
बहन कोई इंसान नहीं होती।
जब वो भी एक ही माँ की संतान होती,
तो क्यों बहन हक की पहचान नही होती?
बहन भी अधिकारिणी,
इस हक की क्यों जबान नहीं होती?
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
(Priya princess Panwar)
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78