*बहन को भाई की परदेस में भी याद आती है(हिंदी गजल/ गीतिका)*
बहन को भाई की परदेस में भी याद आती है(हिंदी गजल/ गीतिका)
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(1)
बहन को भाई की परदेस में भी याद आती है
वो सपनों में हमेशा भाई को अपने बुलाती है
(2)
जो छूटा मायका उसकी अभी भी याद गलियाँ हैं
वो अक्सर स्वप्न में चक्कर लगाने उसके जाती है
(3)
पिता-माता के घर को छोड़कर ससुराल में जाना
ये हिम्मत सिर्फ बेटी में है, बेटी ही निभाती है
(4)
हमेशा डोर बचपन की बहन-भाई को बाँधे है
गुजरते वक्त की दूरी भी कब इनको सताती है
(5)
बहन की आँख में झाँको तो केवल प्यार झलकेगा
मौहब्बत है उसे, वह इसलिए टीका लगाती है
(6)
वो बूढ़ी हो गई ससुराल में रहते हुए अब तो
मगर बचपन को अपने रोज फिर भी गुनगुनाती है
(7)
किसी बेटी से उसका मायका मत छीनना ईश्वर
बिना पंखों के चिड़ि़या की तरह यह फड़फड़ाती है
(8)
वो मीलों दूर से भी भाई को अपने बचा लेगी
जो यम का दीप अपने घर की चौखट पर जलाती है
(9)
वो ढोलक छीनने पर भाई का घनघोर गुस्साना
बहन बूढ़ी वो करके याद अब भी मुस्कुराती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451