“बहनों के संग बीता बचपन”
बहनों के संग ऐसा बीता बचपन,
प्यार और करुणा से भरा रहता था मन,
जैसे एक टोली थी,
बड़ी से छोटी ,छोटी से बड़ी,
जैसे एक हाथ की पांचो उंगली थी।
घर मेरे घुघरू सी झंकार थी,
ऐसा ही मेरा आँगन ,परिवार था।
लड़ना ,झगड़ना,प्यार जताना,
चिड़ियों सी चटकार थी।
छोटी हो या बड़ी ,सब के साथ रहना,
परियों सी प्यारी ,सब छोटी बहना थीं।
गंगा से बहती नीर,बहती चली जाती थी,
फिर आकर गंगा जमुना सी मिल जाती थी।
स्वार्थ न चिंताए थी,
खुशियों से जीती थी ।
ये रिश्तों का आधार था,
एक दूजे को दीदी , दीदी कहती थीं।
मैं जानती हूं बहनो को,प्यार ठहरा ठहरा था,
उन बहनों का प्यार ,समंदर से गहरा था।
बहनों के बीच ,होती थी अनगिनत लडाई,
फिर भी बहने कभी ,होती नही थी पराई।
आसमां से जैसे ,बरसी थी दुआ,
भगवान ने दिया ,जो बहनो का प्यार मिला।
बहने मेरी मेरे लिए,नजराना है,
मुझे लगता है ऐसे,बेशकीमती खजाना हैं।
बहनों के प्यार की,कोई नही परिभाषा,
मुस्कराते हुए देखूं उसे, बसी इतनी सी अभिलाषा।
दूरी मायने नही रखती,बहनों के दरमियाँ,
दिल के करीब होती है,बहने जैसे सहेलियां।
सींचा बड़ी ने प्यार से,रिश्ता ये अनमोल,
मेरे लिए तो मेरी, बहने हैं बहुत अनमोल।
बहने होती है दर्पण, उनमे मेरा ही अक्स ही झलकता है,
हमसे वो कितनी हो दूर,यूँ ही प्रेम निखरता है।
मेरा है अधिकार तुझपे,तू मेरी हिस्सेदारी है,
बहनों हमने तेरे ऊपर ,अपनी जान वारी है।
ना वादों के डोर है, ना कसमो के नाते,
बहने तू अनमोल है,जो जन्म से ही मिल जाते।
प्रेम की वो रूप हैं, जैसे सागर का झरना,
बहने एक से बढ़कर एक है ,उनका क्या ही कहना।
प्यार और तकरार से ,बनता ये रिश्ता खास है,
शब्दों में कैसे कहूँ बहनों, तेरे प्यार का एहसास है।
तुम सब रहो आबाद, सातों रंग में सजती रहो,
तुम सब का मन सुंदर हो, इंद्रधनुष सी दिखती रहो।
तुम सब को दुनिया की,सारी खुशी मिले,
आती रहे घड़ी ऐसे ,तुम सबके आंगन में फूल खिले।
ये कविता रूपी ,आशीर्वाद है हमारा,
सब बहनों बना रहे ,सुहाग तुम्हारा।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज