बहना भैया का पवित्र त्योहार
यह बात तब की है जब हम भी छोटे बच्चे थे ,
परियो के किसे कहानियां हमको भी लगते अच्छे थे ।
हमारे घर मे भी एक परी ने जन्म लिया ,
भईया शब्द से हम को गौरत्व किया ।
नन्ही सी परी जब मेरे हाथों में आयी थी,
मुझकों लगता था के वो मेरी परछायी थी ।
छोटा-छोटा सा नाक नक़्श हमसे मिलता जुलता था,
माँ का पूरा ध्यान अब कोमल हाथो पर रहता था ।
मेरे हिस्से का प्यार अब उसको ज्यादा मिलता था,
कुछ दिन हुए तो पता चला उस से मुझको प्यार मिलता था ।
दिन भर मैं ही में उसका साथी दोस्त और रक्षक था,
उसको खिलना पिलाना कभी गंदे कपड़े बदलना रहता था ।
समय डोर यू चलते चलते वो चलने बोलने लग गयी ,
मीठे झगड़ो की तानाशाही हँसने रोने लग गयी ।
घर वाले भी अब दो पक्ष मैं आन बटे,
पापा की लाड़ली माँ का में बिगड़ा नाम पड़े।
पर झगड़ो मैं उसके रोने के हथियार सब से तेज़ पड़े,
जिद करना मेरी चीज़े लेना और किताबों को फड़ने में उनका मस्तिष्क तेज चले ।
कभी कभी गुस्से मैं लाल हम उनके गालो को भी लाल कर बैठे,
फिर खुद ही मनाये लालच दे ओर हँसने के तर्कवितर्क करे ।
अब धीरे धीरे हमारी घुड़िया रानी और स्यानी हो बैठी,
घर के हर समान की हालत कहा है कैसी है
इसकी चोकीदार हो बैठी ।
पूरे घर का नक्शा उनको याद रहता है ,
जिस का नाम लो वो समान दो मिनट में हाज़िर रहता है ।
अब नही है हम वैसे दोस्त अब थोड़ा आदर हमरा होता है,
भईया है हम ,हमी गुरु है और समान लाने लेजाने वाले एक क्रेता है ।
हमारी माँ के खाने का स्वाद भी अब उसके हाथ मैं आता है,
पैसे का भी हिसाब रखना उसको अच्छे से आता है ।
सबसे सुंदर सबसे प्यारी वो मेरे घर की चिड़िया है,
में रहता सख्त बहार से हमारा रिश्ता ही कुछ ऐसा है।
मेरे कदम से कदम मिलती वो अब बड़े होने के ख्वाब देखती है,
मुझसे भी अच्छे परीक्षा में नम्बर लाऊंगी ये हर पल मुझसे कहती है ।
जिद तो अब भी होती पर तत्काल न अब पूरी होती है,
मेरी बहना सब्र रखने मैं थोड़ी कच्ची पकी होती है।
सब कुछ कुशल है फिर भी उसकी चिंता होती है,
बड़ी हो रही समाज की कभी-कभी चिंता मुझको होती है ।
मैं भाई हूँ ,हर बात की रक्षा करने की याद दिलाने ,हर साल रक्षा बंधन आता है
उनके तोफो की फ़रमाइश का पूरा गुलदस्ता आता है।
आशिर्वाद देना दिल से उसको दुआ देना मेरा
दिल हर पल कहता है,
उसके लिए चाँद को तोड़ लू, उनकी हसी के लिए पागल दिल मेरा रहता है ।
कुछ दूर सोचू तो आँखे मेरी भर जाती है,
कुछ सालों की बरसातों के बाद डोली उनकी भी उठ जाती ।
अलग घर जाएगी वो उसका ये घर पराया है,
कैसे-कैसे दस्तूरों को इंसानो ने बनाया है।
सब बड़े होके सब अलग-अलग परिवारों मैं बट जाएंगे,
पर त्योहारों जैसे रक्षाबंधन पर दूर दूर से मिलने आयेंगे।
याद रहेगी सब यादे दिल के एक बक्से मैं ,
निकलेगा सेलाब एक दिन रक्षाबंधन पे मिलने से ।
उसकी सारी हरकते मैं भी पापा की तरह अपने बच्चो को सुनाऊंगा,
सुना -सुना के आनंदित होता मुस्कुरानुगा ।
रुको रुको में मन के सागर को कितनी दूर बहा के ले गया,
मेरी गुड़िया अभी यही है मैं कहा ख्यालो की नदी मैं दूर बह गया ।
आज ही रक्षाबंधन उसको बधाई भी देना है,
जो तोफा मंगा है उसने वो भी तो लाकर देना है।
बस खुश रहे वो मैं यही कामना करता हूँ,
खिलखिलाती रहे आंगन में इसके लिए ही कुछ न कुछ करता रहता हूँ।
मेरी बस एक बात आखरी पढ़ते जाओ यारो,
बहनो का समान करो और दो इज्जत उनको तुम लालो।
है यह अनमोल रत्न एक दिन परायी हो जायेगी,
मानो या न मानो तुमारी आँखे उस दिन भर जाएगी ।
याद आयंगे सारे पल, पर समय न वापस आएगा,
तुम अभी क़दर करो अपनी ओर दुसरो की बहनो की ,
हर बहन की दुआ से तू बहुत तरक्की पायेगा।
ओर इसी तरह खुशी भरा रक्षाबंधन हर साल मनाएगा ,
बहना भैया का पवित्र त्योहार हर साल आएगा ।
हर्ष मालवीय
एन. एस .एस. स्वयंसेवक
बीकॉम कंप्यूटर फाइनल ईयर
शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय हमीदिया
भोपाल मध्यप्रदेश