बहना की दुआंयें
आज नींद जाने क्यों मीनाक्षी की आंखों से कोसों दूर थी। बोर्डर से भैया के आने की खुशी और रक्षाबंधन का दिन, दोनों खुशियां संभालें नहीं संभल पा रही थी।
जैसे ही घड़ी ने 3बजे की अलार्म दी,झट से मीनाक्षी बिस्तर छोड़ रसोई में पहुंची। हाथों में मानों पर लग गये थे। फुर्ती से सारा काम निपटाया और बच्चों को लेकर मां के घर पहुंची। सामने हीं मां बाबा दिख पड़े। जाकर बाबा के पैरों को छुआ, बाबा ने आशीषों से झोली भर दी। मां के पैरों में झुकती मीनाक्षी को देख मां ने घृणा से मुंह फेर लिया। सौतेलेपन का एहसास मां शायद कभी नहीं भुलतीं थी।
बातों को नजरंदाज कर मीनाक्षी भैया के कमरे की ओर भागी,परदा हटाया और भैया को देखते हीं गश खाकर गिर पड़ी।होश आया तो अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी थी। भैया पास बैठे माथा सहला रहे थे। भैया के गले लगकर मीनाक्षी फुट -फुटकर रोने लगी। भैया ने प्यार से सहलाया और कहा – क्या हुआ पगली, बार्डर पर एक हाथ हीं तो खोया है।देख, जिस कलाई पर तू राखी बांधा करती थी वो तो सही सलामत है ना।
सब तेरी दुआओं का असर है पगली,चल उठ अब दिन
ढलने वाला है, सुबह से भुखा हूं, मुंह मीठा नहीं करवायेगी।
जाने कितनी देर दोनों एक दूसरे के गले लगकर रोते रहें। मीनाक्षी ने माथे पर किसी का स्पर्श महसूस किया।पिछे मुड़कर देखा, मां भरी आंखों से माथा सहला रही थी। मीनाक्षी भी मां को देख भरी आंखों में भी खिलखिला पड़ी।