बस मुहब्बत कीजिये
बस मुहब्बत कीजिये
#पंडित पी के तिवारी (लेखक एवं पत्रकार)
इ श्क की ही तरह मुहब्बत शब्द भी प्रेम के अर्थ में खूब इस्तेमाल होता है। यह मूलतः सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी भाषा से फारसी, उर्दू और हिन्दी में आया है। मुहब्बत की रिश्तेदारी भी एक जैसे मिलते-जुलते अर्थ वाले कई शब्दों से है और इन तमाम शब्दों से हिन्दी वाले भी कमोबेश परिचित हैं।
जिस तरह इश्क शब्द की रिश्तेदारी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से भी है (कुल-गोत्र को और छोटे दायरे में देखें तो इसे भारत-ईरानी परिवार का भी कह सकते हैं) और सेमेटिक भाषा परिवार से भी और दोनों ही परिवारों में इश्क का रिश्ता प्रकृति यानी वनस्पति से जुड़ता है। अरबी में ‘श्क’ (shq) धातु को इश्क का मूल माना जाता है वहीं इश्क भारोपीय मूल का है इसके भी पुख्ता प्रमाण हैं और इसका संबंध संस्कृत-अवेस्ता (प्राचीन ईरानी) के इश्-इष् से है जिनमें लगाव, गतिवाचक, प्रेम, चाह से लेकर कामना, इच्छा जैसे भाव हैं। प्रेम का तादात्म्य प्रकृति से है, सृष्टि की गति से है। द्वैत से एकत्व के नैसर्गिक क्रिया-कलाप में सन्नद्ध सृष्टि के कण-कण में प्रतिक्षण सिर्फ प्रेम की हलचल हो रही है। प्रेम गति में ही सद्गति है। अरबी भाषा में बीज के लिए एक धातु है हब्ब (habb/hibb) जिसमें मित्र, प्रिय, पात्र, जैसे भाव हैं।
इश्क की रिश्तेदारी प्रेमवल्लरी यानि अरबी की आशिका और फारसी की इश्क-पेचाँ से है उसी तरह हब्ब धातु में भी मित्रता, प्रिय आदि जो भाव हैं वह यूं ही नहीं हैं। एक तरह जहां इसका अर्थ मित्र है, दूसरी ओर इसका मतलब होता है बीज। गौर करें बीज और प्रिय में भाव एक ही है। यही बात पात्र अर्थात बरतन में भी है। एक बीज को धरती के गर्भ में स्थान मिलता है। धरती का स्नेह-स्पर्श पा कर उसमें अंकुरण होता है और बीज से हटकर धीरे-धीरे एक समूचा पृथक अस्तित्व नजर आने लगता है। जीवन का स्पंदन आकार लेने लगता है। बिना प्रेम के जीवन संभव नहीं है। सदियों से वनस्पति जगत का विस्तार विकिरण के जरिये होता है। विकिरण यानी बीजों का बिखरना, फैलना। अरब के रेगिस्तान में बीजों के बिखरने की क्रिया को हिब्बत कहते हैं। बीज यानी हब्ब और बीजों का बिखरना यानी हिब्बत। यह अरबी प्रत्यय (अत) संज्ञा-सर्वनाम को क्रियारूप में बदलता है।
शुष्क रेगिस्तान में बीजों का बिखराव यानी हिब्बत!!! धरती से बीजों के मिलन का क्षण। बीज, जिनमें जीवन की धड़कन है, अजाने-अजन्मे से रूपाकार जिनमें कुलबुला रहे हैं। और धरती, किसी बीज के भीतर पनपती जीवन की संभावनाओं को अपनी कोख में सुरक्षित स्नेहgrape&wine की गर्मी से तपाना चाहती है। यह बीज कुदरत का है। ख़ल्क यानी सृष्टि की सृजन भावना का प्रतीक है यह बीज जो धरती की कोख में पलता है। यही प्रेम है। हिब्बत में अरबी उपसर्ग म जुड़ने से बनता है महब्बत जिसे हिन्दी में मुहब्बत कहा जाता है। इश्क के नज़रिये से भी देखें तो और भी दिलचस्प नतीजे मिलते हैं। अरबी हिब्ब का एक अर्थ होता है अंगूर या अंगूर का बीज। अंगूर का पौधा भी इश्क-पेचां की तरह ही बेलदार पौधा होता है। प्रकृति में अंगूर की बेल भी किसी न किसी छोटे-बड़े, तने वाले वृक्ष का सहारा लेकर ही फैलती है। वृक्ष से लिपटने, चढ़ने की क्रिया में चाहत, कामना, समर्पण जैसे भाव यहां भी सार्थक हो रहे हैं। अंगूर के रस में नशा होता है। यह नशा प्यार का नशा है। यह यूं ही नहीं आ जाता। इसमें धरती की गर्माहट, बसी है। स्नेहसिक्त है यह रस जो धरा की कोख से निकला है।
अरबी में मित्र को हबीब कहते हैं जो इसी धातुमूल से जन्मा है। हबीबी का मतलब होता है प्रियतम, सुप्रिय, प्यारा, दुलारा। महब्बत का मतलब होता है स्नेह-स्पर्श अथवा प्रेमाभिव्यक्ति। प्यार जताना। जिससे प्यार किया जाता है वह पुरुष पात्र कहलाता है महबूब और स्त्री पात्र कहलाती है महबूबा। हब्ब में मित्र का भाव है इसीलिए इसका बहुवचन हुआ हुबूब। इसमें म उपसर्ग लगने से बनता है महबूब या महबूबा। कई बार यह अंगूरी ही किन्ही प्रेमपात्रों के लिए महबूब और महबूबा साबित होती है। नतीजा वही होता जो प्रेम का चरित्र है। दो में से किसी एक को अपना अस्तित्व खोना पड़ता है। इसे चाहें समर्पण कहें या कुर्बानी!!!! अक्लमंद इस प्रेम को बेवकूफी भी कहते हैं। अरबी में पत्नी को यूँ तो ज़ौजा कहते हैं किन्तु रफ़ीक़ा शब्द भी है जबकि रफ़ीक़ का अर्थ होता है मित्र। स्वाभाविक है मित्र अगर प्रिय है तो प्रियतमा भी हो सकती है। इस नज़रिये से पत्नी के अर्थ में अरबी, फ़ारसी में बीबी शब्द भी प्रचलित है। हबीबा का अर्थ होता है मित्र, मित्रवत। मुमकिन है हबीबा / हबीबी का ही संक्षिप्त रूप बीबी है जिसका एक रूप बीवी ज्यादा प्रचलित हुआ जिसका अर्थ है पत्नी जबकि बीबी आमतौर पर भद्र महिला के लिए सम्बोधन है। हब्बाखातून पर गौर करें। बीबी फात्मा, बीबी नाजरा, बीबी अख़्तरी जैसे नामों पर गौर करें। ये सम्बोधन समाज के दिए हुए हैं। इनमें पत्नी का भाव नहीं।
मोहब्बत कीजिए ! बेइंतहा मोहब्बत कीजिए ! खुले आसमान में उड़ते उन्मुक्त पंछियों की तरह आजाद मोहब्बत कीजिए ! साहिल से बार बार टकराती लहरों की तरह जोरदार मोहब्बत कीजिए ! खिड़कियों को सहलाती, उनकी पीठ थपथपाती नर्म हवा की तरह पवित्र मोहब्बत कीजिए ! सुर्ख पत्तों को नम करती, उनसे लिपट जाने वाली,लिपट कर सरक जाने वाली ओस की तरह अंतिम सांस तक मोहब्बत कीजिए ! अँधेरे की बाहों में पसरी सुनसान सड़क पर निडरता से चलने वाले किसी राही की तरह बेधड़क मोहब्बत कीजिए ! कुदरत की कोख में समाये चाँद, सितारे, आसमान, बादल, नदी ,झरने, सागर, पहाड़, पेड़ पौधे, जंगल, मिट्टी के आपस में जुड़ी कहानी की तरह अटूट मोहब्बत कीजिए ! बेपनाह मोहब्बत कीजिए ! आखिरकार इंसानों को भगवान से प्राप्त सबसे खूबसूरत नेमत है “मोहब्बत”
हाँ, इस मोहब्बत में इतना ख्याल जरूर रखियेगा, कि अगर किसी दिन आपकी मोहब्बत आपसे दूर चली जाए, कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन आपकी मोहब्बत अब आपकी न रह जाए, आपको छोड़कर चली जाए तो आपके अंतर्मन में उसके प्रति,उससे भी ज्यादा अपने प्रति, या समस्त संसार के प्रति नफरत की भावना न पैदा दो !
अकसर मोहब्बत को उदासी, गहरी पीड़ा, फिर नफरतों में तब्दील होते देखा गया है ! जैसे मजहबों की आग ने पृथ्वी के भौगोलिक पृष्ठभूमि के टुकड़े टुकड़े कर डाले, नफरत हमारे दिलों को अनंत टुकड़ों में बाँट देती है, छलनी कर देती हैं ! नफरत की आग में जलती हमारी निगाहों की परिधि सिमट जाती है और उसमें सिर्फ नकारात्मक विचारों के ज्वार-भाटे आते हैं ! नफरत के काले अँधेरे हमारे हमारी मोहब्बत को ही नहीं हमारी भावनाओं, हमारी इच्छाओं, हमारे ख्वाबों तक तो काला कर देते हैं, उन्हें दूषित कर देते हैं ! वह नफरत भले ही हम खुद से ही क्यों न करें !
नफरत से बेहतर है उदासीनता का भाव ! जहाँ हम यह मान लेते हैं कि हमारी मोहब्बत का अब कोई अस्तित्व ही नही है, हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, मोहब्बत के जो खुशगवार पल हमने जिए वो एक बेहतरीन सपना था !
सपने टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं और गुम हो जाते हैं ऐसे जैसे हम कभी उनसे मिले ही नही ! अगर आप यह कर सकें तो मोहब्बत कीजिए , बेपनाह मोहब्बत कीजिए !