बस पल रहे है, परवरिश कहाँ है?
बस पल रहे है, परवरिश कहाँ है?
आज के दौर में बच्चे, बस पल रहे हैं,परवरिश का कोई, सोर्स नहीं मिल रहा है।
सफल होने की दौड़ में, हम सब दौड़े चले जा रहे हैं,पर ये किसने सिखाया कि असफलता भी आयेगी,
कभी-कभी सब कुछ, छूट जायेगा, टूट जायेगा,तब खुद को कैसे संभालना है, ये किसने बताया?
मां-बाप की उम्मीदों के बोझ तले,बच्चों की मासूमियत कहीं दब गई है। उन्हें पाल रहे हैं, सिर्फ अपने सपनों के लिए,पर सिखाया नहीं कि कैसे जूझना है,उस वक्त से, जब दुनिया मुंह मोड़ लेगी,
जब रिश्ते हाथ से फिसल जायेंगे,जब तनाव और हताशा, मन को कमजोर कर देंगे।।
सीखा दिया है कि जीतना है, बड़ा बनना है,सफलता का शिखर छूना है,पर ये किसने सिखाया कि हार भी मिलेगी,जब उम्मीदें टूटेंगी, सपने बिखर जायेंगे,तो उस वक्त मन को कैसे मजबूत करना है?
तनाव की आग में जलते बच्चे,कोई सुनने वाला नहीं, बस जज करने वाले हैं,रिश्ते तो हैं, पर सुख कहीं खो गया है,सफलता तो है, पर आनंद नहीं रहा है।घर तो है, पर परिवार नहीं बचा है,
हर कोई दौड़ रहा है, पर मंज़िल का पता नहीं।।
इस दौर के बच्चे, बस पल रहे हैं,परवरिश की छांव कहीं गायब हो गई है।सिखाया नहीं कि कैसे हंसना है जब आँसू बह रहे हों,
कैसे मजबूत रहना है जब मन कमजोर हो रहा हो,बस यही तो सिखाने की कमी है,आज का इंसान, क्यों तनाव में जी रहा है।
हमने यही नहीं सिखाया, यही तो सबसे बड़ी दिक्कत है।।