बस दुलहन को अपनाना होगा
कुछ ही दिनों पहले
उठी थी उसकी डोली
दहेज के लोभियों ने
आज जला दी उसकी होली।
उसको भी हक था
साँसें लेने का
अपनी जिंदगी को जी लेने का
लाल जोड़े में सजी
इस दुल्हन ने ना जाने
कितने सपने सजाये थे
अपने सुनहरे भविष्य को
लेकर ताने बाने बुने थे
लेकिन उसको क्या पता था
उसके माता-पिता ने
उसके लिए हत्यारे चुने थे।
बेटी को कष्ट न हो इसलिये हीरे मोती जवाहरातों
से घर भर दिया था।
उन्होंने भी कहाँ पता था
उन्होंने अपनी बिटिया की जिंदगी का सौदा किया था
नहीं पता था किसी को
दहेज के लोभी
उसको नहीं बखसेंगे
माता पिता के नयन
बेटी के लिए बरसेंगे
रह जायेंगी कुछ बातें
बरसों बरस विताये
लम्हों की चंद यादें
दहेज के लालचियों का
पेट नहीं भर पायेगा
दहेज का दानव
दुल्हन को निगल जायेगा।
नहीं मिलेगा बेटी से मिलने का मौका
अगर हम और आप
यूँ ही करते रहेंगे
बेटी का सौदा
अब भी वक्त है जाग जाने का
दहेज रूपी दानव
को मार भगाने का
ताकि फिर कोई दुल्हन
न जलायी न सतायी जाये
और न दहेज के दानव की
भेंट चढ़ायी जाये।
अब प्रश्न यह है
क्या हर दुल्हन
लालच और दहेज की
भेंट चढ़ जायेगी?
इसके उत्तर में
युवा पीढ़ी को
आगे आना होगा।
दहेज को कहकर ना
बस दुलहन को अपनाना होगा
दहेज को कहकर ना
बस दुलहन को अपनाना होगा।
-रागिनी गर्ग