बस तुम्हारे लिए !
बस तुम्हारे लिए !
बस तुम्हारे लिए,
फूल खिलता है क्यों,
दिन निकलता है क्यों,
रात ढलती है क्यों,
यों तमन्ना किसी की मचलती है क्यों,
बस तुम्हारे लिए !
पर्वतों की छटा, बादलों की घटा,
मौसमों की हवा रुख बदलती है क्यों
क्यों बना ये गगन,चाँद तारे सघन,
पपीहा ये पिहु -पिहु सुनाता है क्यों
बस तुम्हारे लिए !
प्रीत पलती है क्यों
श्वांस चलती है क्यों
क्यों है दिल में चुभन
क्यों लगी है लगन
बस तुम्हारे लिए !
क्यों बनी दूरियां,
क्यों हैं नज़दीकियां
क्यों दवी सी जुवां पे कोई बात है,
क्यों ये ज़ज्बात हैं,
बस तुम्हारे लिए !