बस गयी हो मेरी रूह में तुम
बस गयी हो मेरी रूह में तुम
कुछ इस तरह जिस तरह
नदियों का बहता नीर
समा जाता है,समुन्द्र में
समुन्द्र का नीर
महासागरों में
फिर एक दूसरे के संग
आलिंगन कर
बहने लगता है
एक ही दिशा में
अपनी मंज़िल की ओर
शिलाओं को पार कर,
मंज़िल तक पहुंचते पहुचंते
निहार लेता है,पूरी दुनिया को
अब अपने भीतर समाये हुए है पीड़ा,
वही पीड़ा जिससे परिचित था
लेकिन आज क्षुब्द है जानकर
की कुछ ही क्षण में हो जाएगा दूर
नेह की डोर से।
भूपेंद्र रावत
24।05।2020