बस की यात्रा
अभी न होगा मेरा अंत ,
अभी- अभी तो पदस्थ हुये
चल पड़े मंजिल की ओर ,
एक दृढ़ संकल्प को लिये ,
अभी न होगा मेरा अंत |
आह्वान, यातना, स्वजन छल ,
जैसी सहस्त्र मुसीबतें आएगीं ,
हमें स्वयं को सशक्त गढ़कर ,
मंजिल की ओर अग्रसर हुये ,
अभी न होगा मेरा अंत।
इस नूतन हयात के लोक में ,
मंजिल लहना ना सुबोध है ,
औचटों को परे करने वाला ही ,
सम्प्राप्ति अपनी मंजिल है ,
मैंने भी एक संकल्प लिया ,
मंजिल सम्प्राप्ति से ना पूर्व ,
अभी न होगा मेरा अंत |
इसकी कार्लचक्र वृहत् दुखद ,
अखिल ना लौटता समावृत्त इससे ,
सच्ची लगन, क्लांति से ही ,
अल्प मनुज लौटते समावृत्त ,
अभी न होगा मेरा अंत।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या