#बस एक शब्द
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★ #बस एक शब्द ★
आसकिरण जन्मी शुभ-लाभ प्रथम बार मिले
उरअँचल बरसी सुगंध मन-उपवन संस्कार खिले
शाला ऊंची प्रेम की घुटने कई-कई बार छिले
चलता-चलता पथिक ठहर जाए जहाँ
वहीं चरण पूजता लक्ष्य हाँ – हाँ – हाँ . . .
वो पँछियों की पंगत घर लौटती सजन
हृदय की धड़कनें नित निज खोजतीं सजन
आँखों की पुतलियाँ सब सहेजतीं वचन
बिन छत की दीवारें कहलाएं घर कहाँ
सिसकता है सूनापन साँ – साँ – साँ . . .
पाँव नीचे धरती सिर पर गगन तना
मेरे साथ-साथ चलता पेड़ इक घना
जीवन की धूप तीखी तीखी है रे मना
बरसती है आग मेरा बचपन गया कहाँ
गोद का झूला आँचल की छाँअ-छाँअ-छाँअ . . .
टकराके पर्वतों से वो लौटती पवन
जाड़े के दिनों में आषाढ़ की तपन
हाथों के दिलासे होंठों की वो छुअन
स्मृतिवन में आती-जाती सब तितलियाँ
एक शब्द शेष रहा माँ – माँ – माँ . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२