# बस इतनी सी है आरजू #
हर रोज झगड़ा होता है ,मां का घर वालों से।
मैं गर्भ में हूं मां के बस सुन रही हूं
मां के कानों से।
मां कहती हैं लेने दो जन्म मेरी बेटी को,
पिता कहता है नहीं ये न चला पाएगी मेरे कुल के दीपक को ।
अरे !मेरी भी कोई सुनो बेटी कहती है जुस्तजू ,लेने दो जन्म मुझे बस इतनी सी है आरजू।
शुरू हो गई जंग फिर मां और पिता में ,
हार गई मां जब लड़ते-लड़ते तो चली गई अस्पताल में।
फिर मैंने मां का दिल टटोला और पूछा क्या तुम चाहती हो यह सब हो जरूर ।
लेने दो जन्म मुझे बस इतनी सी है आरजू।
हो गई मां जब बहुत मजबूर ,तो लिया फैसला बेटी को जन्म देगी वह जरूर।
छोड़ दिया फिर पिता ने मां का साथ।
रहने लगी वह अकेली बनकर अनाथ ।
बेटी चाहती थी वह ,इतना सा था उसका कसूर ।लेने दो जन्म मुझे बस इतनी सी है आरजू।