बस आप इतना कीजिए
व्यंग्य
बस आप इतना कीजिए
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काका जी!आपने मुझे पहचाना
मगर आप मुझे भला कैसे पहचानेंगे?
मैं पांच साल बाद फिर जो आया हूं
पर मैं भी क्या करता
पिछले चुनाव के सदमें से
अभी उबर भी न पाया
कि फिर चुनाव आ गया.
तब मैं फिर आपकी चौखट पर
आपको बेवकूफ बनाने आ गया
पिछली बार का कर्ज
अभी तक उतार भी नहीं पाया
पर इस बार खेत गिरवी रखकर
फिर चुनाव लड़ने आ गया।
यदि आपकी कृपा इस बार हो जाये
तो मेरा कल्याण हो जाये,
पिछला क़र्ज़ भी उतर जाये
गिरवी रखा खेत भी छूट जाते।
बस आप इतना कीजिए
अपना और अपनी बिरादरी का वोट
मुझे दिलवा दीजिए।
विश्वास कीजिए! दुबारा आपको परेशान नहीं करुंगा
बस एक बार चुनाव जीत गया तो
इतना धन दौलत रुतबा बना लूंगा
फिर आप और आपकी बिरादरी वोट दे न दे
जीतने भर का वोट मैं खुद खरीद लूंगा
तुम जैसे भिखमंगो के दुबारा पैर न पड़ूंगा
नेतागीरी की आड़ में
अपराध की दुनिया में नाम चमका लूंगा
मंत्री पद यूं खरीद लूंगा
और बड़ा नेता बन जाऊंगा,
तब चुनाव जीतने के
सारे हथकंडे जान जाऊंगा,
तब चुनाव तेरे वोटों से नहीं
गुंडागर्दी से जीत जाऊंगा
तुझे झांकने तक की जहमत
फिर कभी नहीं उठाऊंगा।
राजनीति क्या होती है
तुम सबको बताऊंगा
तुम जैसे फटीचर के पैरों में झुकना तो दूर
तुम्हारी और नजर भी उठाकर न देखूंगा
जिंदगी ऐश से बिताऊंगा।
धन दौलत से अमीर बन जाऊंगा
देश दुनिया में बड़ा नाम कमाऊंगा
बड़ा नेता जो हो जाऊंगा।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित