बस अविराम मैं और तुम…
कई अनुत्तरित प्रश्न और मैं
एक युद्ध जो मुझ में ही विराजमान है
जाने कब से, युद्धविराम की तलाश में
भटक रही हूँ, मन के गलियारे में
और, तुम जाने कब से बैठे हो
मेरे अंदर, लिए अपने सैकड़ों प्रश्न
क्या दे पाऊँगी कभी तुम्हें
तुम्हारे अबोले प्रश्नों का उत्तर
क्या लगा पाऊँगी विराम
अपने अंदर के युद्ध को
कई बार उठ के,
आसमान में देखती हूँ
चीख से भर देना चाहती हूँ
आसमान के विशाल आंगन को
कि कुछ भी शेष न रहे मुझ में
तुम्हारे सिवा, बस तुम और मैं
बाँकी सब धुंआ-धुआं
न प्रश्न न युद्ध
न ही उत्तर, न ही कोई विराम
बस अविराम मैं और तुम…
… सिद्धार्थ