बसेरा
जगत दो दिन का बसेरा है
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यहाँ कुछ भी नहीं तेरा है,
जगत दो दिन का बसेरा है।
मोह – माया में रहे खोया,
रहता दिन में भी तू सोया,
उठो हो गया सवेरा है।
जगत दो दिन का बसेरा है।
लोभ-ममता ने तुझे जकड़ा,
पापड़ सा है अकड़ा-अकड़ा,
ये घर कुछ दिन का डेरा है।
जगत दो दिन का बसेरा है।
बंदे तुमको न अक्ल आई,
आँखों से न देता दिखाई,
काल – विकराल ने घेरा है।
जगत दो दिन का बसेरा है।
मनसीरत राम भजन गा ले,
तू सुबह-शाम राम नाम ले,
छाया घना घोर अंधेरा है।
जगत दो दिन का बसेरा है।
यहाँ कुछ भी नहीं तेरा है,
जगत दी दिन का बसेरा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)