बसन्त
शीत लहर के घोर कहर को,
दबा के आ जाता बसन्त।
नव पल्लव, नव कलियों में,
स्फुटित कर देता बसन्त।।
कँपती सुबह की बेला में,
नव ऊर्जा भर देता बसन्त।
बिहग डाल डाल पर चहके,
खूब निखरता तब बसन्त।।
दमके प्रसून व वृक्ष लताएँ,
है चटक रंग भरता बसन्त।
कूहु कुहु कोकिल की धुन,
पपीहा को इठलाता बसन्त।।
हिमशिला को अन्तराह से,
नीर बना देता बसन्त।।
कलकल करते झरनों की,
है मधुर गीत देता बसन्त।।
धानी पीत में धरा नहाये,
मुस्काये कामद बसन्त।
लघु दीर्घ सभी जीवों में,
प्रीत रीत भरता बसन्त।।
जब हो धुंध सूर्य पर घेरा,
किरण उषा लाये बसन्त।
नव शक्ति समाहित करने,
नित ऐसे ही आये बसन्त।।