बसंत
प्रकृति की गोद में
घूमते-घूमते
आनंद परमानंद को झेलते-झेलते
खुशी के हर पल से
जब थक जाओगे ना
बसंत!
तो आ जाना मेरे पास
मैंने रखा है अपने पास
कुछ दुःख,
कुछ निस्तब्ध पीड़ा
पिघलती मानवता के ताने-बाने
तुम्हारे मनोरंजन के लिए।
-अनिल मिश्र,©️®️