बसंत
लो फ़िर
बसंत आया है
छंट गए
बादल घनें और
यही गज़ब की साया है
धरा के रंग हैं
बहुतेरे यहाँ
गुरु ऋतुओं का
नरेंद्र आया है
स्वच्छ दिख गया..
ये गगन अब सारा
सुहावनी बयार भी
अब आ गयी
सावन की..
ये पनपी हरियाली
शरद का ऐसा नवपात
ऐसा नवगंध लाया है
ठिठुरे ठंड से..
वृहंग ढूंढ रहे हैं
बहाना उड़ने का
नायाब ये समा छाया है
समय अनोखा
दृश्य मनमोहक
पंचतत्व ने
भी रूप अपना
अब असली दिखाया है
.. लो फिर
बसंत आया है
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————– बृजपाल सिंह 01/02/2017