बसंत
बसंत
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ब्रज बरसाना जैसे, तन में बसा है मन,
बसती है जन-मन, राधिका दुलारी है ।
बसते दुलारी मन, यशुदा के नंदलाल,
जिनके अधर बसे, बाँसुरिया प्यारी है ।।
बसे हुए बाँसुरी में, राग-तान नेह-प्रेम,
प्रेम जहाँ नृत्य करे, मोहन मुरारी है।
मोहन मुरारी जब , नृत्य करे धरती पे,
लौटती बसंत की ये, प्यारी ऋतु न्यारी है ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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