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20 Feb 2021 · 1 min read

बसंत

आधार छंद-भुजंगप्रयात
122 122 122 122
हवा ये बसंती बहुत ही सुखद है ।
घुले प्राण मधुकर सुधा-सा शहद है।

धरा है सुवासित खिले पुष्प सारे,
भरा हर तरफ देखिये आज मद है।

सभी ओर केवल उमंगें भरी है,
खुशी से भरा है न कोई दुखद है।

छटा ये बसंती लगे खूबसूरत,
भरे पेड़ पौधे बड़ा ही फलद है।

नया रूप सौन्दर्य अनुपम नजारे,
खिली खेत सरसों सुहानी जरद है ।

लिए प्रीत का पर्व आया बसंती,
अनोखी छटा कर रही फिर मदद है।

महक फाग फगुआ बजे चंग ढ़ोलक,
मनोरम दिशा दीप्त आनंद प्रद है।

चतुर ये शिकारी बिछा जाल बैठा,
फँसाया मृगी को नयन में जलद है।

उठा नाच जीवन मगन मस्त आली,
हुए बावरा सब मगर एक हद है।

नई रंग सुषमा सुसज्जित हुआ है,
खिली धूप सुन्दर नहीं अब शरद है।

ठिठोली हँसी व्यंग्य अनुरक्त सारे,
कृपा शारदे की मिला जो वरद है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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